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मीवाभिगमसूत्र 'तुडियाई त्रुटितानि-बाहुरक्षकाः हस्ताभरणाः 'अंगयाई' अङ्गदानि-बाहाभरणविशेपाः 'केउराई केयुराणि, 'दसम्मुहिताणतकं' दशमुद्रिकानन्तकं हस्ताङ्गुलिस म्वन्धि मुद्रिकादशकम् 'कडिमुत्तक' कटिसूत्रकम् 'ते अस्थिमुत्तक' व्यस्थि मूत्रकम् 'मुरवि-कंठमुरविं-पुखीं-कण्ठमुखीम्-आभरणविशेपो, 'पालंयसि'-प्रालम्ब, तपनीयमयः विचित्रमणिरत्नभक्तिचित्रात्मनः प्रमाणेन स्वप्रमाणः आमरणविशेषः । 'कुंडलाई'-कुण्डले-करणाभरणे, 'चूडामणि'-चूडामणिः, तत्र चूडामणिर्नामसकलपार्थिव-रत्नसर्वसारः देवेन्द्रमनुष्येन्द्रशिरः कृतनिवासः निःशेषाऽपमङ्गल शान्तिरोगप्रमुखदोपापहारकारी प्रवरलक्षणोपेतः प्रवरमगलभूतआभरणविशेषः, माला को 'कडगाइ कटकों को कलाई के आभरणों को 'तुडियाई' • त्रुटितों को वाहुरक्षकों को 'अंगयाई अंगदों को-बाहु के विशेषों को
केयूराई' केयरों को 'दसमुद्दिनागंतक' १० मुद्रिकाओं को अंगूठियों को 'कडिसुत्त' कटिसूत्र को-करधोनी को 'ते अत्थित्तक' व्यस्थि सूत्र को 'मुरविं' कंठ मुरवि को 'पलंयंसि' प्रालम्बक को-तपनीय सुवर्ण के बने हुए विचित्र मणियों के चित्रों से विचित्र तथा पहिरने वाले के बरावर जो आभरण विशेष होता है उसका नाम प्रालम्बक हैं ऐसे प्रालम्बक रूप आभरण विशेष को 'कुंडलाई कानों में कुण्डलों को 'चूडामणि' शिरोरत्न को यह रत्न सब पार्थिव रत्नों • में सारभूत माना गया है, इन्द्र और चक्रवर्ती के मस्तक पर यह
धारण किया जाता है। समस्त अमंगलों का एवं रोगों का और दोषों का यह विनाशक होता है तथा सुन्दर लक्षणों से यह युक्त होता है, ऐसा यह मङ्गल भूत आभरण विशेष होता है। ऐसे आभरण .. माई २क्षहीन 'अंगनाइ' महान अर्थात् isitी मार विशेषने 'केयूराइं यूरोन 'दसमुदियाणंत' १० स भुनियामा-पीटीयाने 'कडिसुत्तय टिसूत्र ४४शन. 'ते अस्थिसुत्तकं' यस्थिसूत्रने 'मुरवि' भुरवीन 'पालसिं' પ્રાલંબને એટલે કે–તપનીય સેનાના બનેલ વિચિત્ર મણિના ચિત્રોથી ચિતરેલ તથા પહેરવાવાળાની ખરેખરનું જે આભૂષણ વિશેષ હોય છે. तेनु नाम प्रा५४ छे. मेवा प्रा ४२ 'कुंडलाईनमांना याने 'चूडा. મજ માથાના રત્નને આ મસ્તકનું આભૂષણ પાર્થિવ રત્નમાં સાર રૂપ
માનવામાં આવેલ છે. અને તે ઇન્દ્ર અને ચક્રવર્તિ રાજાના મસ્તક પર ધારણ • કરાવવામાં આવે છે. એ સઘળા અમંગલેનું તથા સઘળા રોગોનું અને સઘળા દેનું વિનાશક હોય છે. તથા સુંદર લક્ષણથી એ યુક્ત હોય છે. આવું એ मे भगद ३५ मासूषा विशेष छे. मावा माभूषा विशेषने तथा 'चित्तरपणु