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प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ ३.३ सू.१०५ अरुणद्वीपसमुद्रनिरूपणम् ३७५ द्वाराणि द्वाराणां च परस्परमन्तरम् 'तहेव जोयणसहस्साई" क्षोदोदकसमुद्र द्वारवत्-अवाधयाऽन्तरम् 'जाव अट्ठो' यावदर्थः-यतश्च 'वावीओ खोदोदग पडिहत्थाओ-उप्पाय पव्वयगा सध्यवरामया अच्छा' वाप्यो बिलपङ्तय क्षोदोदक परिपूर्णाः-उपपातपर्वतकाश्च सर्वात्मना वज्रमया अच्छाः श्लक्ष्णा यावत्प्रतिरूपाः तस्मात्-तथा 'असोगवीतसोगा य एत्थ दो देवा महड़िया जाव परिवसंति' अशोक-वीतशोक नामानौ द्वौ देवावन्न महद्धिको महाद्युतिको० यावत्पल्योपम
स्थिति को परिवसतः। 'से तेणटेणं जावसंखेज्जं सव्वं तत्तेनार्थेन गौतम ! अरुण। वरो द्वीपो० २ एवमुच्यते नाम, तथान्यदप्युत्तरम्-अरुणद्वीप इति शाश्वतं नाम
अपराजित नाल के चार द्वार हैं इन द्वारों का आपस में अन्तर तहेव संघजाई जोषणसहस्साई क्षोदोदक समुद्र के द्वारान्तर की तरह संख्यात लाख योजनों का है 'जाव अहो' इस द्वीप का ऐसा नाम इस कारण से हुआ है कि यहां पर 'वादीओ खोदोद्ग पडिहत्थाओ०' जितनी भी छोटी बडी वापिकाएं आदि जलाशय जगह जगह पर है उन सब में इक्षुरस के जैसा पानी भरा हुआ है उनमें उत्पात पर्वत ' हैं ये लव उत्पातपर्वत वन्नमय हैं अच्छ-आकाश और स्फटिकमणि के जैसे निर्मल हैं श्लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप है इस कारण से एवं 'असोगवीतसोगाय एल्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति' अशोक
और वीतशोक नाम के दो देव यहां पर रहते हैं ये महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले हैं और इनकी यावत् एक पल्योपम की स्थिति है इस कारण ले 'से तेणटेणं जाव संखेज्ज सव्वं' इस द्वीप का नाम अरुणवरहीप ऐसा कहा गया है तथा इस दीप के ऐसा नाम होने में વિજયન્ત જયન્ત અને અપરાજીત એ નામેવાળા ચાર દરવાજાઓ છે. એ દરवान-सानु ५२२५२नु मात२ 'तहेव जोयणसहस्साई' हा समुद्रनाद्वाना मतर प्रमाणे सभ्यात साम याननु छ. 'जाव अट्ठो' २॥ दीपनु मे प्रभारी नाम ये ४२४थी थयेट छ , मडीयो 'बावीओ खोदोदगपडिहत्याओ०' त्यां સ્થળે સ્થળે જેટલી નાની મોટી વા વિગેરે જલાશ છે, સ્થળે સ્થળે છે. તે બધામાં સેલડીના રસ જેવું પાણી ભરેલ છે. તેમાં ઉત્પાત પર્વત છે. આ બધા ઉત્પાત પર્વતે વજમય છે. અચ્છ આકાશ અને સફટિક મણિના જેવા निम छ यावत् प्रति३५ छे. मे ४थी तथा 'असोगवीतसोगोय एत्थ दो देवा महिढिया जाव परिवसंति' || मने पातशा ये नामनामे हे। અહીયાં નિવાસ કરે છે. તેઓ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણે વાળા છે, અને તેઓની स्थिति यावत् से पक्ष्योपभनी छ. मे ४।२४थी 'से तेणठेणं जाव संखेज्जा