Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1519
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१५१ जीवानां अष्टविधत्वनिरूपणम् १९९५ देसूणा पुव्वकोडी' जघन्येनैकं समयमुत्कर्पण देशोना पूर्वकोटिः । 'केवलनाणी णं भंते ! साईए अपज्जवसिए' केवलज्ञानी खलु भदन्त ! साधपर्यवसितः सदा नित्यज्ञानवान् न ज्ञानाद्विमुक्तो भवति । 'मइ 'अन्नाणी णं भते !० मइ अन्नाणी तिविहे पन्नत्ते-तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए-अणाइए वा सपज्जव'सिए-साइए वा सपज्जवसिए' मत्यज्ञानी खलु भदन्त !० मत्यज्ञानी त्रिविध मनःपर्ययज्ञानी मनःपर्यवज्ञानि रूप से कितने काल तक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! मनःपर्ययज्ञानी मनःपर्ययज्ञानी रूप से 'जह० एक्कं समयं उस्कोसेणं .देखणा पुव्वकोडी' कम से कम एक समय तक रहता हैं और अधिक से अधिक कुछ कम पूर्व कोटि काल तक रहता है 'केवलनाणी णं भंते ! सादीए अपज्जवसिए' हे भदन्त ! केवलज्ञानी केवलज्ञानि रूप से कितने काल तक - रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं हे गौतम ! केवलज्ञानी केवल ज्ञानि रूप से सादि अपर्यवलित काल तक रहता है 'मह अन्नाणीणं भंते ! मइअण्णाणीत्ति कालओ केवच्चिरं होई' हे भदन्त ! मतिअज्ञानी मत्यज्ञानी रूप से कितने काल तक रहता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! मत्यज्ञानी मत्यज्ञानि रूप से ' मइअण्णाणि तिविहे पण्णत्ते' रहने के लिये तीन प्रकार का कहा गया है एक 'अणाइए वा अपज्जवसिए' अनादि अपर्यवसित मत्यज्ञानी होता है इसका प्रत्यज्ञान कभी भी दूर नहीं પર્યવજ્ઞાની મનઃ૫વજ્ઞાનીપણાથી કેટલા કાળ પર્યન્ત રહે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ! મન:પર્યવજ્ઞાની મન ૫ર્યવજ્ઞાનીપણાથી 'जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी' माछामा मेछ। ४ समय પર્યન્ત રહે છે. અને વધારેમાં વધારે કંઈક ઓછા પૂર્વકેટી કાળ પર્યન્ત રહે छे. 'केवलनाणी णं भंते ! सादीए अपज्जवसिए' मापन पणज्ञानी - જ્ઞાનીપણાથી કેટલાકાળ પર્યન્ત રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે ગૌતમ! કેવલજ્ઞાની કેવલજ્ઞાનીપણાથી સાદિ અપર્યવસિતકાળ પર્યન્ત રહે छ. 'मइ अण्णाणी णं भंते ! मइ अण्णाणी त्ति कालओ केवच्चिर होइ' હે ભગવન્! મતિ અજ્ઞાની મતી અજ્ઞાની પણાથી કેટલા કાળ પર્યન્ત રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ. મત્યજ્ઞાની મત્યજ્ઞાની. पाथी 'मइ अण्णाणी तिविहे पण्णत्ते' २२वा माटे नए प्रा२ना वामां आवेत छ. 'अणाइए वा अपज्जवसिए' मनायवसित भत्यज्ञानी डाय छे. તમને મત્યજ્ઞાન ક્યારેય પણ દૂર થઈ શકતું નથી. તે અભવ્ય લેટિના

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