Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1520
________________ १४९६ जीवाभिगमसूत्र स्तद्यथा-अनाद्यपर्यवसितो वा १ अनादिको वा सपर्यवसितः २ सादिको वा सपर्यवसितः । 'तत्थ णं जे से साइए सपज्जवलिए से जहन्नेणं अंतोमुहत्त' तत्र-यः स सादिकः सपर्यवसितः स जवन्येनान्तर्मुहूर्तम्, 'उकोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्डू पोग्गलपरियट्ट देसूर्ण' उत्कर्पणानन्तं कालमनन्ता उत्सपिण्यवसर्पिण्यः कालतः क्षेत्रतोऽनन्ता लोका अपार्ध पुद्गलपरावर्त देशोनम् । 'मुयअन्नाणी एवं चेव' श्रुताज्ञानी गौतम ! एवमेव त्रिविधः एनमनुकरोति । 'विभंगनाणी णं भते ! विभग' विभङ्गज्ञानी खलु भदन्त ! विभङ्गज्ञानीति कालतः हो सकता है, यह अभव्य कोटि का जीव होता है दूसरा-'अणादीए वा सपज्जवसिए' अनादि सपर्यवसित मत्यज्ञानी जीव होता है इसका अनादि काल से लगा हुआ मत्यज्ञान दूर हो जाता है पर फिर यह मत्यज्ञानी नहीं बनता। तीसरा-'साइए सपज्जवसिए' मत्यज्ञानी सादि सपर्यवसित होता है यह मत्यज्ञानी अवस्था से छूट कर पुनः मत्यज्ञानी अवस्था वाला बन जाता है अतः ऐसा यह मत्यज्ञानी जीव कम से कम अन्तर्मुहूर्त तक मत्यज्ञानी बना रहता है और अधिक से अधिक 'उक्कोसेणं अणंत कालं जाव अवह्ल पोग्गलपरियह देसूणं' अनन्तकाल तक यावत् कुछ कम अपार्धपुद्गल परावर्त काल तक मत्यज्ञानी बना रहता है इसके बाद वह नियम से ज्ञानी हो जाता है। 'सुय अण्णाणी एवं चेव' श्रुत अज्ञानी भी इतने ही काल तक श्रुताज्ञानी बना रहता है बाद में वह श्रुतज्ञानी हो जाता हैं 'विभंग अण्णाणी णं भते !' हे भदन्त ! विभंगज्ञानी कितने काल तक विभंग डाय छे. मीan 'अणादीए वा सपज्जवसिए' मनसिपयवसित भत्यજ્ઞાની જીવ હેાય છે. તેને અનાદિકાળથી લાગેલ મત્યજ્ઞાન દૂર થઈ જાય છે. मन ५ ते भत्यज्ञानी थता नथी. त्रीत 'साइए सपज्जवसिए' भत्यज्ञानी સાદિ સપર્યવસિત હોય છે. આ મત્યજ્ઞાની અવસ્થાથી છૂટીને ફરીથી મત્યજ્ઞાની અવસ્થાવાળા બની જાય છે. તેથી એવા આ મત્યજ્ઞાની છવ ઓછામાં ઓછા અંતમુહૂર્ત પર્યન્ત મત્યજ્ઞાની બનેલા રહે છે. અને વધારેમાં વધારે 'उक्कोसेण अणतं कालं जाव अवडूढं पोग्गलपरियट्ट देसूणं' मन पर्यन्त ચાવત્ કંઈક ઓછા અપાઈ દુલગ પરાવર્ત કાળ પર્યન્ત મત્યशानीपाथी २७ छ. ते पछी ते नियमयी ज्ञानी मनी anय छे. 'सुयअण्णाणी एवं चेव' श्रुत अज्ञानी ५ सेटमा ४५ पय-त श्रुतमज्ञान पामा २९ छे. म त पछी श्रुतज्ञान वा मनी नय छे. 'विभंग अण्णाणी णं भंते !' भगवन् ! qिan ज्ञानवाण 30 mपय-त विज्ञानी

Loading...

Page Navigation
1 ... 1518 1519 1520 1521 1522 1523 1524 1525 1526 1527 1528 1529 1530 1531 1532 1533 1534 1535 1536 1537 1538 1539 1540 1541 1542 1543 1544 1545 1546 1547 1548 1549 1550 1551 1552 1553 1554 1555 1556 1557 1558 1559 1560 1561 1562 1563 1564 1565 1566 1567 1568 1569 1570 1571 1572 1573 1574 1575 1576 1577 1578 1579 1580 1581 1582 1583 1584 1585 1586 1587 1588