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जीवाभिगमसूत्र पर्यवसितखात् । 'अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं' अनादिकस्य सपर्यवसितस्य मत्यज्ञानिनो नास्त्यन्तरम् । केवलम्-'साईयस्त सपज्जवसियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं-उक्कोसेणं छावहि सागरोवमाई साइरेगाई' सादिकस्य सप- - यवसितस्य जघन्यतोऽन्तर्मुहूतम् उत्कर्पतः पट् पष्टिः सागरोपमाणि सातिरेकाणि । 'एवं सुय अन्नाणिस्स वि एवं श्रुताऽज्ञानिनस्त्रिविधस्य द्वयोर्नास्त्यन्तरम् तृतीयस्यान्तरमेवमेव । ___'विभंगनाणिस्स णं भंते ! अंतरं०' विभङ्गज्ञानिनः खलु भदन्त !० जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम्-उत्कर्पणाऽनन्तकालस्य है क्योंकि यह अभव्य की श्रेणि में ही होता है अतः अनादि काल से लगे आये इसका मत्यज्ञान का कभी विनाश नहीं होता है जो दूसरे नम्बर का मत्यज्ञानी है वह भव्य की कोटि में रखा गया है अतः मत्यज्ञान इसका विनष्ट होने पर यह पुनः सत्यज्ञानी नहीं वनता है इसलिये यहां पर भी अन्तर नहीं आता है तथा तीसरा नम्बर का जो सादि सपर्यवसित मत्यज्ञानी हैं उसका अन्तर होता है सो यह अन्तर 'जहाणे णं अंतोमुहत्तं उक्कोसेर्ण छावहि सागरोवमाई साइरेगोर्ड' जघन्य से तो एक अन्तर्मुहर्त का है और उत्कृष्ट से कुछ अधिक ६६ सागरोपम का है 'एवं सुयअन्नाणिस्स वि' इसी प्रकार से श्रुताज्ञानी भी तीन तरह के होते हैं-एक अनादि अपर्यवसित श्रुताज्ञानी और दूसरा अनादि सपर्यवसित श्रुताज्ञानी सो इन दोनों का अन्तर नहीं होता है रहा तीसरे नम्बर का श्रुताज्ञानी-सो इनका अन्तर सादि सपर्यवसित मत्यज्ञानी के जैसा ही है 'विभंगनाणिस्स નથી. કેમકે–તે અભવ્યની શ્રેણીમાં જ હોય છે. તેથી અનાદિ કાળથી લાગેલા મત્યજ્ઞાનને કેઈપણ કાળે વિનાશ થતું નથી. બીજા પ્રકારના જે મત્યજ્ઞાની છે, તે ભવ્યની કેટીમાં આવેલ છે. તેથી તેમનું મત્યજ્ઞાન નાશ પામ્યા પછી તે ફરીથી મત્યજ્ઞાની બનતા નથી. તેથી અહીયાં પણ અંતર આવતું નથી. તથા ત્રીજા પ્રકારના જે સાદિ સપર્યાવસિત મત્યજ્ઞાની છે, તેનું અંતર डाय छे. मन त मत२ 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उनकोसेणं छावर्द्धि सागरोवमाई साइरेगाई' धन्यथी मे मत इतनु जाय छे. सन अष्टथी ४४४ धारे ६६ छ।स8 सागरीषभनु छ. 'एवं सुय अन्नाणिस्स वि' से प्रभारी श्रुताज्ञानी પણ ત્રણ પ્રકારના હોય છે. તેમાં એક અનાદિ અપર્યવસિત શ્રુતજ્ઞાની અને બીજા અનાદિ સપર્યાવસિત થતાજ્ઞાની આ બન્નેનું અંતર હેતું નથી. તથા ત્રીજા પ્રકારના કૃતાજ્ઞાનીનું અંતર સાદિ સપર્યવસિત મત્યજ્ઞાનીના ४थन प्रभाय छे. 'विभंगनाणिस्स ण भंते ! अंतरं० सावन् ! विज्ञानी