Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1522
________________ १४९८ जीवाभिगमसूत्रे मुहुत्तं - उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवğ पोग्गलपरियह देखणं जघन्येनान्तम् - हूर्तमुत्कर्षेणाऽनन्तं कालमनन्ता उत्सर्पिण्यसर्पिण्यः कालतः, क्षेत्रतोऽनन्ता लोका अपा पुद्गलपरावर्त देशोनम् । 'एवं सुयनाणिस्स वि' एवमेव श्रुतज्ञा निनोऽपि विज्ञेयम् । 'मणपज्जवणाणिस्स वि ' मनः पर्यवज्ञानिनोऽपि एवमेव । 'केवलनाणिस्स काल का होता है ? अर्थात् किसी अभिनिबोधिक ज्ञानी का जब आभिनिबोधिक ज्ञान छूट जाता है तो वह फिर इसे कितने काल के बाद प्राप्त कर सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञानी अपने छूटे हुए आभिनिबोधिक ज्ञान को पुनः प्राप्त कम से कम या तो 'जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणतं कालं' एक अन्तर्मुहूर्त के बाद कर लेता है या फिर वह अधिक से अधिक अनन्तकाल के बाद प्राप्त कर लेता है इस अनन्त काल में अनन्त उत्सर्पिणियाँ और अनन्त अवसर्पिणियां समाप्त हो जाती है यावत् कुछ कम अपार्धपुद्गलं परावर्त काल व्यतीत हो जाता है 'एवं सुयfree fa' इस प्रकार से श्रुतज्ञानी का भी छूटे हुए श्रुतज्ञान को प्राप्त करने में जघन्य और उत्कृष्ट काल का व्यवधान होता है बाद में वह पुनः श्रुतज्ञानी बन जाता है 'मणपज्जवनाणिस्स वि' मनः पर्यवज्ञानी भी अपने से छूटे हुए मनः पर्यवज्ञान को पुनः प्राप्त करने में जघन्य और उत्कृष्ट रूप से कहे गये एक अन्तर्मुहूर्त काल को और अनन्तकाल को पार करके समर्थ हो जाता है० अर्थात् उसे पुनः 2 નિર્માધિક જ્ઞાનવાળાનું. જ્યારે આભિનિમેાધિકજ્ઞાન ટિ જાય છે, તો તે ફરીથી કેટલાકાળ પછી તેને પ્રાપ્ત કરી શકે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! આલિનિખાધિકજ્ઞાની પોતાના ટ્યૂટિ ગયેલ આભિનિમેાધિકજ્ઞાનને इरी प्राप्त पुरवामां शोछाभां गोछा 'जहणणं अतोमुहुत्त उक्कोसेणं अणतं कालं' એક અંતર્મુહૂત પછી તે ફરીથી પ્રાપ્ત કરીલે છે. આ અનંત કાળમાં અનંત ઉત્સર્પિણીયા અને અનંત અવસર્પિણીયા સમાપ્ત થઈ જાય છે. ચાવત્ કંઇક मोछ। मधु युद्दशंस, परावर्त क्षण वीती भय छे. 'एवं सुयनाणिस्स वि' न પ્રમાણે શ્રુતજ્ઞાનીનું પણ છૂટિ ગયેલ શ્રુતજ્ઞાન ફરીથી પાછું મેળવવામાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ કાળનું વ્યવધાન હૈાય છે. તે પછી ફરીથી તે શ્રુતજ્ઞાની મની लय छे. 'मणपज्जवनाणिस्स वि' भनःपर्यवज्ञानी पशु घोताना छूटीगयेसा મન:પર્યાવજ્ઞાનને ફરીથી પ્રાપ્તકરવામાં, જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ પણાથી કહેવામાં આવેલ એક અંતર્મુહૂત કાળને અને અનતકાળને પાર કરીને મેળવવા સમ यह भय छे. अर्थात् इरीथी तेने भेजवी से छे, 'केवलनाणिस्स णं भंते !

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