Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1566
________________ ૯૪૨ जीवाभिगमसूत्रे सैवेति शेषः । ' विय-तिय- चउरिदिय - पंचिंदियाणं एएसिं चउण्डंपि अंतरं जहनेणं अंतोमुद्दत्तं - उक्को सेणं वणग्सइकालो' द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रियपञ्चेन्द्रियाणामेतेषां चतुर्णामपि जघन्येनान्तमुहूर्तमन्तरम् - उत्कर्षेण वनस्पतिकालं यावत् । 'अणिदियस्स णं भंते 10 अनिन्द्रियस्य खन्द्र भदन्त ! 'अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ?' अन्तरं कालतः क्रियच्चिरं भवति ? भगवानाह - 'गोयमा - साई - यस्स अपज्जवसियस पत्थि अंतरं' गौतम ! साद्य पर्यवसितस्य नास्त्यन्तरमिति । अथ दशानामप्यल्पबहुत्वं पृच्छति - 'एएसि णं भंते ! पुढवीकाइयाणं- आउकाइयाणं - ते उकायाणं - वाउकाइयाणं वणस्स इकाइयाण - वेदियाणं तेइंदियाणं चउरिंजीव की जघन्य और उत्कृष्ट रूप से कार्यस्थिति बतलाई गई है० 'विय, तिय, चउरिंदिय, पंचिंदियाणं एएसिं च पि अंतरं जहणणे अंतमुत्तं उक्को सेणं वणस्सइकालो' दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, और पञ्चेन्द्रिय, इन चारों का अन्तर जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट भे वह वनस्पतिकाल प्रमाण अनन्तकाल का है 'अणिदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होई' हे भदन्त ! अनिन्द्रिय जीव का अन्तर कितने काल का होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं'साइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं' हे गौतम ! अनिन्द्रिय सिद्ध जीव का अन्तर नहीं होता है । इन दशों के अल्पबहुत्व का कथन - 'एएसि णं भंते ! पुढवीकाइयाणं, आउकाइणं, तेउकाड्याणं, वाउकाइयाणं, वेइंदियाणं, तेईदियाणं, चउरिंदियाणं, पंचिंदियाणं, अनिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो मधन्य भने उत्सृष्ट यथार्थी अयस्थिति उपाभां मावेस छे. 'विय, तिय, चउरिंदिय पंचिदियाणं एएसिं चउन्हं पि अंतरं जहणे णं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' मे ंद्रिय तेहद्रिय योऽद्रिय भने यथेन्द्रिय या यारेयनु અંતર જઘન્યથી એક અતર્મુહૂર્ત છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે વનસ્પતિ કાલ, प्रभाणुनु अनन्तठाण हेवामां आवे छे. 'अणिदियस्स णं भते ! अंतरं कालओ केवच्चिरं होई' हे भगवन् ! अनिन्द्रिय वनु मंतर डेंटला अजनु होय छे ? श्या प्रश्नना उत्तरभां प्रभुश्री छे - साईयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं હું ગૌતમ ! અનિંદ્રિય સિદ્ધ જીવનુ અંતર હોતું નથી. આ દશેના અલ્પ મહેત્વનું થન 'एएसि णं भते ! पुढवीकाइयाणं, आउकाइयाणं तेउकाईयाणं, वाउकाइयाणं, वैइंदियाणं, तेइंदियाणं, चउरिंदियाणं, अर्णिदियागय; कयरेकयरेर्हितो अप्पा वा यावा तुल्ला वा विसेसाहियवा' हे भगवन् ! या पृथ्वी अयि । अष्ठायि,

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