Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1530
________________ १५०६ जीवभिगमसूत्र कियच्चिरं खलु कालतोऽन्तरम् ? गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहुर्त-उक्कोसेणं वणस्सइकालो' जघन्येनान्तर्मुहूर्त मुत्कर्पण वनस्पतिकालः । 'तिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवच्चिरं होई' जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उवकोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं तिर्यग्योनिकस्य० गौतम ! जघन्येन अंतर्मुहूर्तम् उत्कर्षण सातिरेकं सागरोपमशतपृथक्त्वम् । 'तिरिक्तजोणीणीणं भंते!' तिर्यग्यौनिक्याः खलु भदन्त ! गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं- उक्कोसेणं वणस्सइकालो०' जघचिरं होई' हे भदन्त ! नैरयिक का अन्तर काल की अपेक्षा कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! नैरयिक का अन्तर काल की अपेक्षा कम से कम तो एक अन्तर्मुहर्त का है और अधिक से अधिक 'वणस्सइकालो' बनस्पतिकाल प्रमाण अनन्तकाल का है 'तिरिक्खजोणियस्स णं अंतरं कालओ केवच्चिर होइ' हे भदन्त ! तिर्यग्योनिक का अन्तर काल की अपेक्षा कितना है ? उत्तर में प्रक्षु कहते हैं-हे गौतम ! तिर्यग्योनिक का अन्तर काल की अपेक्षा कम से कम तो एक अन्तर्मुहूर्त का है और 'उक्कोसेण' अधिक से अधिक 'सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं कुछ अधिक सागरोपम शत पृथक्त्व का है 'तिरिक्खजोणीण भंते !' हे भदन्त ! - तिर्यक् स्त्रियों का अन्तर कितने काल का है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! तिर्यकत्रियों का अन्तर काल की अपेक्षा कम से कम तो 'अंतोमुहत्तं' एक अन्तर्मुहूर्त का है और 'उक्कोसेणं' अधिक से अधिक 'वणस्सइकालो वनस्पति काल જીનું અંતર કાળની અપેક્ષાથી કેટલા કાળનું કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! નરયિકનું અંતર કાળની અપેક્ષા થી ઓછામાં ઓછું એક અંતર્મુહૂર્તનું છે. અને વધારેમાં વધારે 'वणस्सइ कालो' वनस्पति प्रमाण नु मेरो मानत छे. 'तिरिक्ख. जोणियस्स णं भते । अंतरं कालओ केवच्चिरं होई' भगवन् । तिव्यनिકેનું અંતર કાળની અપેક્ષાથી કેટલું કહેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ ! તિર્યનિક જેનું અંતર કાળની અપેક્ષાથી. ઓછામાં साछु. मे मतभुइतनु छ. मन. 'उकोसेणं' पधारेमा धारे 'सागरोवमसय पुहुत्त साईरेगं' ४ पधारे सागरापमशत पृथ५ ४त्वनु छे. 'तिरिक्खजोणी णं भंते !' सावन् तिययोनि स्त्रीयानु मत२ टक्षा गर्नु કહેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહેલ છે કે-હે ગૌતમ ! તિર્યંગ્યનિક स्त्रीयानु मत२ जनी अपेक्षाथी माछामा माछु 'अंतोमुहुत्तं' मे४ मतभुतनु छे. अने, 'उकोसेणं' वधारेमा धारे 'वणस्सइ कालो' वनस्पति

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