Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1532
________________ १५०८ जीवाभिगमसूत्र प्रश्ने भगवानाह-'गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सीओ' गौतम ! सर्वस्तोका मानुष्यः संख्येयकोटि कोटि प्रमाणत्वात् । 'मणुस्सा असंखेजगुणा' नतो मनुष्याः असंख्येयगुणाः श्रेण्यसंख्येयभागप्रमाणत्वात् । 'नेरइया असंखेजगुणा' ततो नैरयिकाः असंख्येयगुणाः । 'तिरिक्खजोणिणीओ असंखेजगुणा' ततस्तियग्योन्यः असंख्येयगुणाः । 'देवा संखेजगुणा-देवीओ संखेनगुणाओ' ततो देवास्ततो देव्यः संख्येयगुणाः । 'सिद्धा अणंतगुणा-तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा' ततः किनसे विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! सव्वस्थोवा मणुस्सीओ' हे गौतम ! इन जीवों में सब से कम मनुष्य स्त्रियां हैं 'मणुस्सा असंखेजगुणा' संमूच्छिम मनुष्य की अपेक्षा मनुष्य असंख्यातगुणे अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'नेरइया असंखेनगुणा' नैरयिक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं ! 'तिरिक्खजोणिणीओ असं. खेज्जगुणाओ' इनकी अपेक्षा तियर स्त्रियां असंख्यातगुणी अधिक हैं। इनकी अपेक्षा 'देवा संखेजगुणा' देव संख्यातगुणें अधिक हैं इनकी की अपेक्षा 'देवीओ संखेज्जगुणाओ' देवियां संख्यातगुणी अधिक हैं । इनकी अपेक्षा 'सिद्धाअणंतगुणा' सिद्ध जीव अनन्तगुणें हैं 'तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा' इनकी अपेक्षा तिर्यग्योनिक अनन्तगुणे अधिक हैं मनुष्यों का प्रमाण संख्यात कोटी कोटी है इसलिये उन्हें सव से कम कहा गया है इनकी अपेक्षा जो मनुष्यस्त्रियों को असं. ख्यातगुणा अधिक कहा गया है वह उनके श्रेणि के असंख्यातवें વધારે છે?ક્યા કયાજીની બબર છે? અને ક્યા છે ક્યા જીથી विशेषधि छ ? २प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छ -'गोयमा ! सव्यत्योवा मणुस्सीओ गौतम ! २मा सघा वामां सौथी माछी भनुष्य लियो छे. 'मणुस्सा असंखेज्जपुणा' स भूमि भनुष्योना तi मनुष्यो मिस यातगए। पधारे छे. तेना ४२di 'नेरइया असंखेजगुणा' नै२५४७। असभ्याता पधारे छ. 'तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ' तेना ४२ता तिययानि लिया मस ज्यात पधारे छ. तेना ४२di 'देवा संखिजज्जगुणा' हे। यातगा। पधारे छ. ना ४२di 'देवीओ असंखेज्जगुणाओ' हेवियो मसण्यात qधारे छ. तेना ४२di ‘सिद्धा अणतगुणा' सिद्धछ। मन तग धारे छे. तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा' तेन ४२ता तिय योनि मानता धारे છે. મનુષ્યનું પ્રમાણ સંખ્યાત કટિ કેટીનું છે. તેથી તેઓને સૌથી ઓછા કહેવામાં આવેલ છે. તેના કરતાં મનુષ્ય સ્ત્રિયાને જે અસંખ્યાતણ વધારે કહેવામાં આવેલ છે, તે તેમની શ્રેણીના અસંખ્યાતમાં ભાગપ્રમાણુ હેવાથી

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