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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. १०५ अरुणादिद्वीपसमुद्रनिरूपणम् ९०३ सहस्साई परिक्खेवेणं जाव अट्ठो गोयमा ! सयंभूरमणोदए उदए अच्छे पत्थे जच्चे-तणुए फलिहवण्णाभे-पगतीए उदगरसेणं पनत्ते सयंभूरमणवर सयंभूरमणमहावरा एत्थ दो देवा महडिया' सेसं तहेव जाव असंखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोमेंसु वा-३' स्वम्भूरमणद्वीपं हि सर्वतः संवेष्टय स्वयम्भूरमणसमुद्रो वृत्त० सन् तिष्ठति स समुद्रोऽसंख्येययोजनशतसहस्राणि परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः यावान् अर्थः तत्केनार्थेन भदन्त ! स्वयम्भूरमणः समुद्रः-२ एवमुच्यते ? हे गौतम ! स्वयम्भूरमणोदकं अच्छं-पथ्यं जात्यम्-अनाविलं-तनुकं-स्फटिकवर्णाभ प्रकृत्योदकरसपूर्णम् अत्र महद्धिको देवौ स्वम्भूरमणवर-स्वयम्भूरमणमहावरौ पल्योपमस्थितिको परिवसतः, तत्तेनार्थेन स्वयम्यूरमणः समुद्रः-२ एवमुच्यते शेष पूर्ववत् । ज्योतिष्कसूत्र मपि रुवकादिवत् यावत्तारागणकोटिकोटयः॥सू०१८५॥ से प्रकटित किया है इस के उत्तर में प्राहु कहते हैं-'गोयमा ! सयंभूरमणोदए उदए अच्छे पत्थे जच्चे, तणुए फलिहवण्णाभे पगतीए उदगरसेणे पण्णत्ते' हे गौतम ! स्वयंभूरमण समुद्र का जल अच्छ आकाश और स्फटिक मणि के जैसा निर्मल है-पथ्य है जात्य-अनाबिल है-अर्थात मलिनता से विहीन है तनुक-हलका है-भारी-नहीं है स्फटिक मणि की कान्ति जैसा है एवं स्वभावतः जल के रस से परिपूर्ण है। यहां पर स्वयंभूरमणवर और स्वयंभूरमण महावर नाम के दो देव रहते हैं। इनकी स्थिति १-१-पल्योपम की है इसी कारण हे गौतम ! इल समुद्र का नाम 'स्वयंभूरमण' ऐसा कहा गया है। यहाँ चन्द्र-सूर्य-आदि ज्योतिष्क देव असंख्यात हैं देव से लेकर स्वयंभूरमण तक जोत्रि प्रकारता नहीं कही गई है वह 'देवे नागे जक्खे, भूए य सयंभूरमणे य' इस कथन के अनुसार नहीं कही गई है ॥१०५॥ जच्चे, तणुए, फलिहवण्णा पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते' 3 गौतम! स्वय भूરમણ સમુદ્રનું પાણી અછ-આકાશ અને સ્ફટિકમણીના જેવું નિર્મળ છે. पथ्य छे. त्य-मनावित छे. अर्थात् मलिनता पार्नु छ. तनु४- छ, ભારે નથી. સ્ફટિક મણિની કાંતી જેવી કાંતી વાળું છે. અને સ્વભાવથી જ જલના રસથી પરિપૂર્ણ છે. આ સ્વયંભૂરમણ સમુદ્રમાં સ્વયંભૂરમણવર અને સ્વયંભૂરમણ મહાવર નામવાળા બે દેવે નિવાસ કરે છે. તેઓની સ્થિતિ ૧. એક ૧ એક પલ્યોપમની છે. એ જ કારણથી હે ગૌતમ આ સમુદ્રનું નામ સ્વયંભૂરમણ એ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે. આ સમુદ્રમાં ચંદ્ર અને સૂર્ય વિગેરે તિષ્ક દેવો અસંખ્યાત છે. દેવના કથનથી લઈને “સ્વયંભૂરમણ समुद्रना ४थन पर्यन्त २ त्रिप्रा२ पाडवाभा मावस नथी त 'देवे नागे जक्खे भूएय सयंभूरमणे य' 24॥ ४थन प्रमाण ४ नथी. ॥ सू. १०५ ॥ ।