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प्रमैयद्योतिका टीका प्र. ३ सू. १२७ एकेन्द्रियादीनामल्पबहुत्व निरूपणम् ११५५
या कयरेकयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचिंदिया' एतेषां वक्ष्यमाणक - द्वि-त्रि- चतु: - पञ्चेन्द्रियाणां कतरेभ्यः कतरेऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा जीवाः इत्यल्प - बहुत्वविषयः प्रश्नः भगवानाह - गौतम ! पु मध्ये सर्वभ्यः स्तोकाः पञ्चेन्द्रियाः संख्येययोजनकोटिकोटिप्रमाणविष्कम्भसूची प्रमितप्रतरासंख्येयभागवर्त्यसंख्येयश्रेणीगताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् । 'चउरिंदिया विसेसाहिया' पञ्चेन्द्रियापेक्षया चतुरिन्द्रिया विशेपाधिकाः विष्कम्भसूच्यास्तेषां प्रभूतसंख्येययोजनएकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, और पंचेन्द्रिय जीवों के बीच में कौन जीव किन जीवों की अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किनकी अपेक्षा 'बहुया वा' बहुत हैं कौन किनके 'तुल्ला वा' बराबर हैं ? कौन किसे 'विसेसाहिया वा' विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! सम्वत्थोवा पंचिदिया' हे गौतम! इन जीवों के बीच में सबसे कम पञ्चेन्द्रिय जीव है 'चरिंदिया विसेसाहिया' इन पञ्चेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा चौइन्द्रिय जीव विशेषोधिक हैं । पञ्चेन्द्रिय जीवों को सब से अल्प जो बतलाया गया है उसका तात्पर्य ऐसा है कि ये पञ्चेन्द्रिय जीव संख्यात योजन कोटी कोटी प्रमाण विष्कम्भ सूची से प्रमित जो प्रतर का असंख्यातवां भाग है । उस असंख्यातवें भागवर्ती जो असंख्यात श्रेणिगत आकाश प्रदेशराशि है इस राशि प्रमाण हैं । इनकी अपेक्षा जो चतुरिन्द्रिय जीवों को विशेषाधिक कहा गया है उसका कारण ऐसा है कि ये जीव संख्यात ન્દ્રિય, દ્વીન્દ્રિય, તે ઇન્દ્રિય, ચૌઇન્દ્રિય અને પચેન્દ્રિય જીવામાં કયા જીવા કયા
જીવા
पुरता भक्ष्य छे ? या कवी या वो हरतां 'बहुया वा' वधारे छे ? आए ना ४२तां 'तुल्ला वा' मरामर छे भने आए होना ४२तां ‘विसेसाहिया वा’ विशेषाधिक हे ? या प्रश्नना उत्तरभां अनुश्री छे–“गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचि 'दिया' हे आतम ! या मधा भवेोभां सौथी माछा पथेन्द्रिय छे. 'चउरिंदिया विसेसाहिया' २मा पयेन्द्रिय वा रतां यार 'द्रियवाणा भवे। વિશેષાધિક છે. પંચેન્દ્રિય જીવાને જે સૌથી અલ્પ કહેવામાં આવેલ છે, તેનું તાપ એવું છે કે આ પચેન્દ્રિય જીવા સખ્યાત ચેાજન કાટિકાટિ પ્રમાણ વિષ્ણુભ સૂચિથી પ્રતરના જે અસખ્યાતમા ભાગ છે. એ સખ્યાતમા ભાગ તિ" અસખ્યાત શ્રેણિગત જે આકાશ પ્રદેશ રાશિ છે, એ રાશિ પ્રમાણુના છે. તેના કરતાં જે ચતુરિન્દ્રિય જીવાને વિશેષાધિક કહ્યા છે તેનું કારણ એવું છે કે એ જીવા સખ્યાત યાજન કાટિકાટિ પ્રમાણુ વિષ્યમ્ભસૂચિ છે. એ વિષ્ણુ