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प्रमैयद्योतिका टीका प्र.१० सु.१४७ जीवानां चातुर्विनिरूपणम् ४३७ सम् । 'अचक्खुदंसणी दुविहे पन्नत्ते अणाईए वा अपज्जवसिए अणाईए सपजवसिए' अचक्षुर्दर्शनी द्विविधः अनादिकोयाऽपर्यवसितः यो न कदाचिदपि सिद्धिं गन्ता, अनादिको वा सपर्यवसितः भव्यविशेषः यः सेत्यति । 'ओहि दंसणिस्स जहन्नेणं एगं समयं' अवधिदर्शनी जघन्येनैक समयम् अवधिदर्शनप्रतिपत्त्यनन्तरमेव कस्यापि मरणतो मिथ्यात्वगमनतो दुष्टाऽध्यवसाय भावतोऽवधिप्रतिपातात्, 'उक्कोसेणं दो छावट्ठी सागरोवमाणं लाइरेगाओ' - उत्कर्षेण द्वे षट् षष्ठी सागरोपमाणां सातिरेके तत्रैव पट् पष्टिरेवं विभङ्गज्ञानी तिर्यक् पञ्चन्द्रियोऽथवा मनुष्योऽधः सप्तम्यां तमस्तमः प्रभायां वहां से भी मरण कर वह अचक्षुदर्शन वालों में उत्पन्न हो जाता है उस अवस्था में यह चक्षुदर्शन वाले की कायस्थिति का काल जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है । 'अचक्खुदसणी दुविहे पण्णत्ते' अचक्षुदर्शनी दो प्रकार का कहा गया है-'अणादीए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए' जैसे-अनादि अपर्यवसित अचक्षुदर्शन वाला जीव और अनादि सपर्यवसित अचक्षुदर्शन वाला जीव इनमें • जो अनादि अपर्यवसित अचक्षुर्दर्शन वाला जीव है वह कभी भी
सिद्धि को प्राप्त नहीं करेगा तथा जो अनादि सपर्यवसित अचक्षुदर्शन वाला जीव है वह सिद्धि को प्राप्त करेगा 'ओहिदंसणिस्स जह० एक्कं समयं उक्कोसेणं दो छावट्ठी सागरोक्माणं साइरेगाओ' जो अवधिदर्शन वाला जीव है उसकी कायस्थिति का काल जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से कुछ अधिक दो ६६ सागरोपम का है जघन्य से एक समय का है इसका तात्पर्य ऐसा है कि कोई એમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. એ અવસ્થામાં એ ચક્ષુદર્શન વાળાઓની કાય स्थितिन . धन्यथी ४ मतभुतन उपामा मावेस छ. 'अचक्खुदसणी दुविहे पण्णत्ते' मन्यक्षुशनी 2. ४२ना वामां आवेता छ. 'अणादीए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए' मनाहि अ५ वसित मन्याशन જીવ અને અનાદિ સપર્યાવસિત અચક્ષુદર્શન વાળા જીવ તેમાં જે અનાદિ અપર્યવસિત અચક્ષુદર્શન વાળા જીવ છે. તે કઈ પણ સમયે સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી શકતા નથી તથા જે અનાદિ અપર્યવસિત અચક્ષુદર્શન વાળા ७१ छ. ते सिद्धि प्रास ४२२. 'ओहिसणिस्स जहणेणं एक्कं समय उनको सेणं दो छावद्वि सागरोवमाण साइरेगाओ' रे अवधिशन
के તેની કાયસ્થિતિનો કાળ જઘન્યથી એક સમયને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક વધારે છે ૬૬ છાસઠ સાગરોપમને છે. જઘન્યથી એક સમયને છે. તેમ