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जीवाभिगमन सर्वविरति परिणाम समयानन्तरसमय एव कस्यापि मरणादेकं समयं जघन्येन । 'उक्कोसेणं देसूणा पुच्चकोडी' देशोना पूर्वकोटिरुत्कण । 'असंनया जहा अन्नाणी' यथाऽज्ञानी तथाऽसंयताः । असंयतस्त्रिविधः-अनावपर्यवसितः यः कदाचिदपि संयम न प्राप्स्यति १ अनादिसपर्यवसितो यः संयभं लप्स्यति २ । (तद्भवे नैव सिद्धि गन्ता) सादिसपर्यवसितः सर्व विरतेर्देशविरते; परिभ्रष्टः ३ स एप - इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! 'जहन्नेगं एक्कं समयं संथत जीव सर्वविरति युक्त जीव जघन्य से एक समय तक संयतरूप से रहता है क्योंकि सर्वविरति परिणाम के अननार समय में ही किसी २ जीव का मरण हो जाता है और 'उकोलेणं देसूणा पुचकोडी' उत्कृष्ट से वह कुछ कम पूर्वकोटि तक रहता है । कुछ कम इसलिये कहा है कि सर्वविरति आठ वर्ष के बाद ही धारण किया जाता है तथा विदेहक्षेत्र में अभी भी उत्कृष्ट पूर्व कोटि की आयु है और वहाँ सर्वविरति का इतने काल तक आराधना जीव करते हैं । 'असंजया जहा अन्नाणी' अज्ञानी के तीन भेदों की तरह असंयत के भी तीन भेद है-एक अनादि अपर्यवसित असंयत, अनादि सपर्यवसित असंयत, और तीसरा सादि सपर्यवसित इनमें जो असंयत अनादि अपर्यवसित है वह तो कभी भी संयम को नहीं पाता है और न पावेगा अनादि सपर्यवसित असंयत जीव संयम को कभी न कभी पालेता है और प्राप्त किये गये संयम से ही वह सिद्धि मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ गौतम ! 'जहण्णं एक्कं समयं धन्यथी એકસમય પર્યન્ત સંતપણાથી રહે છે, કેમકે સર્વવિરતિ પરિણામની પછીના समयमा
पर्नु भ२ २७ नय छे. अने, 'उक्कोसेणं देसूणा પુત્રોલી ઉત્કૃષ્ટથી તે કંઈક ઓછા પૂર્વ કોટિ પર્યન્તર રહે છે. કંઈક ઓછા એમ એટલા માટે કહ્યું છે કે–સર્વ વિરતિ આઠ વર્ષ પછી જ ધારણ કરવામાં આવે છે. તથા વિદેહ ક્ષેત્રમાં અત્યારે પણ ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકેટિનું આયુષ્ય છે. 'मन त्या सर्ववितिनी माराधना मारण पर्यन्त ४२ छ, 'असंजया जहा अन्नाणी' मज्ञानियोना न लेहो प्रमाणे असताना पत्रण हो छ. એક અનાદિ અપર્યાવસિત અસંયત, બીજા અનાદિ સપર્યાવસિત અસંત, અને ત્રીજી સાદિસપર્યસિત અસંયત એમાં જે અસંયત અનાદિ અપર્યવસિત છે, તે તે કોઈ પણ સમયે સંતપણું મેળવી શકતા નથી. અને ભવિષ્યમાં પણ મેળવી શકશે નહીં. અનાદિ સપર્યવસિત અસંયત છવ સંયમપણાને