Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1487
________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१४९ जीवानां पइविधत्वनिरूपणम् १४६३ ज्ञानाद्वियुक्त कियता कालेन पुनस्तज्ज्ञानं लभते तद् अन्तरं ज्ञातुमीहा भदन्त ! भगवानाह - गौतम ! 'आभिणियोहियनाणिस्स जान्नेणं अंतोमुहुत्तं-उकोसेणं अणंतं कालं अवई पोग्गलपरियट देसूर्ण' आभिनियोधिकज्ञानस्य जघन्य घृत्याऽन्तर्मुहूर्तम्-कस्यापि एतावत्कालेन भूयोऽपि आभिनियोधिकज्ञानित्व भावात् उत्कर्पतोऽनन्तं कालमनन्ता उत्सपिण्यवसापिण्यः कालतः क्षेत्रतश्चाऽपाध पुदगल परावर्त देशोनम् । एवं सुयनाणिणो अंतर' एवमेव श्रुतज्ञानिनः श्रुतज्ञानलाऽन्तरं कम अर्धपुद्गल परावर्त काल की समाप्ति हो जाती है इतने बडे काल के वाद वह जीव अज्ञानी नहीं रहता है किन्तु ज्ञानी हो जाता है। इनका अन्तर कथन-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है आभिनिवोधिक ज्ञान से मुक्त हुआ जीव पुनः आभिनियोधिक ज्ञान प्राप्त करे तो उसकी प्राप्ति में उसे कितने काल का अन्तर होता है अर्थात् विरह काल का साम्हना करना पडता है ? इसके उत्तर में प्रसु कहते हैं-हे गौतम ! 'आभिणियोहियनाणिस्स जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंत कालं अवडूं पोग्गलपरिय देसूर्ण' आभिनियोधिकज्ञान के छूट जाने पर पुनः उसकी प्राप्ति करने में कम से कम एक अन्तमुहर्त का अन्तर पडता है और अधिक से अधिक अनन्त काल का अन्तर पडता है क्षेत्र की अपेक्षा कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्त का अन्तर पडता है । इतने काल के बाद आभिनिबोधिक ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञान के छूट जाने पर पुनः उसे प्राप्त कर लेता है । 'एवं કંઈક ઓછો અધપુદ્ગલ પરાવર્તકાળ સમાપ્ત થઈ જાય છે. આટલા મોટા કાળ પછી તે જીવ અજ્ઞાની પણુથી રહેતા નથી. પરંતુ જ્ઞાની બની જાય છે. तेभन मतदानु थनઆ અંતરદ્વારના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુ શ્રી ને એવું પૂછે છે કે-આભિનિબંધિક જ્ઞાનથી મુક્ત થયેલ છવ ફરીથી આભિનિબાધિક જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરે તે તે પ્રાપ્ત કરવામાં તેને કેટલા કાળનું અંતર હોય છે આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु श्री ४९ छ ४-३ गीतम । 'अभिणियोहियनाणिस्स जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं अवडूढं पोग्गलपरियट्ट देसूर्ण' मालिनिमाधि જ્ઞાનીનું આભિનિધિજ્ઞાન છૂટિ જવાથી ફરીથી તેને પ્રાપ્ત કરવામાં ઓછામાં ઓછું એક અંતમુહૂર્તનું અંતર થાય છે. અને વધારેમાં વધારે અનંતકાળનું અંતર થાય છે. ક્ષેત્રની એપેક્ષાથી કંઈક ઓછા અધપુદ્ગલ પરાવર્ત કાળનું અંતર થાય છે. એટલા કાળ પછી આભિનિધિક જ્ઞાની આમિનિબાધિક ज्ञान छूटी गया पछी शथी ते तेने पास से छे 'एवं सुयणाणिणो अंतरं'

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