________________
१२९६
जीवाभिगमस्ये 'देवाणं जहा नेरइयाण' देवानान्तु यथा नैरयिकाणाम् 'जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई उक्को० वणस्सइकालो, अपढमसमय. जह० अंतो. उक्को० दणस्सइकालो' दशवर्पसहस्राणि-अन्तर्मुहर्ताभ्यधिकानि जघन्येन वनस्पतिकालश्चोत्कर्षेण । अप्रथमसमयदेवानां जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् वनस्पतिकाल उत्कणेति ।
• अथ चतुर्णा प्रथमसमयानां पारस्परिकमल्पवहुखप्रकारः 'एएसिणं भंते! एतेषां प्रथमसमयस्थ-नैरयिक-तिर्यग्योनिक-मनुष्य-देवानां कतरे कतरेभ्यों ऽल्पा बहुका स्तुल्या विशेषाधिकावेति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा ! सन्चस्थोवा पढमसमयमणुस्सा' गौतम ! सर्वस्तोकाः प्रथमसमयमनुष्याः श्रेण्यसंख्येसे समयाधिक क्षुल्लक भव ग्रहण रूप है 'उक्कोसेणं वणस्सइकालो'
और उत्कृष्ट से वनस्पति काल प्रमाण है 'देवाणं जहाणेरड्या णं नैरयिकों का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहाधिक १० हजार वर्ष का और उत्कृष्ट से वनस्पति काल प्रमाण जैसा कहा गया है-वैसा ही अन्तर कलि देवों का भी जानना चोहिये।
अब सत्रकार प्रथम समयवर्ती. चारों के पारस्परिक अल्पबहुत्व को कथन करते हैं-'एएसि गंभंते ! हे भदन्त ! इन प्रथम समयवता नैरथिक तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देवों के बीच में कौन किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किनकी अपेक्षा बहुत हैं। कौन किनकी अपेक्षा घरावर हैं । और कौन किनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा सव्वत्थोवा पढमसमय मणुस्सा' हे गौतम ! संबसे कम प्रथम समयवर्ती मनुष्य हैं। क्योंकि इनका प्रमोण श्रेणी भनुध्यतु भातर धन्यथा समयाधि ल१ सय ३५ छ. 'उक्कोसेण वर्णस्सइकालो' - मन उत्कृष्टथी वनस्पति र प्रमाण छ. 'देवाणं जहा णेरइयाण' નચિકેનું અંતર જઘન્યથી અંતમુહૂર્ત અધિક ૧૦ દસ હજાર વર્ષનું અને ઉષ્ટથી વનસ્પતિ કાલ પ્રમાણે જે કહેવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણેને અંતરકાળ ને પણ સમજે.
હવે સૂત્રકાર પ્રથમ સમયવર્તી મિરચિક તિનિક, મનુષ્ય, અને દેવ श्य ,यारेन। ५२२५२ना २५६५ मत्पनु ४थन ४२ छे. एएसिणं भंते !' ભગવન આ પ્રથમ સમયવતી નરયિક, તિર્યનિક, મનુષ્ય, અને દેવામાં કાણ કેના કરતાં અલ્પ છે? કોણ કેનાથી વધારે છે? કેણ કેની બરાબર છે અને કેણ કેનાથી વિશેષાધિક છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે -गायमा सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा', गौतम ! सौथी माछ। प्रथम