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जीवाभिगमने
टीका- 'कविहाणं भंते ! णिओया पण्णत्ता, कतिविधाः खलु भदन्त ! निगोदाः प्रज्ञप्ताः (निगोदाः जीवानामाधारविशेषाः ) भगवानाह - 'गोयमा ! दुविहा णिओया पन्नत्ता तं जहा - णिओया य णिओयजीवा य' गौतम ! द्विविधा निगोदा: प्रज्ञप्ताः सामान्यतः तद्यथा - निगोदाच ( निगोदा जीवा श्रयविशेषाः ) निगोदजीवाथ विभिन्न तैजसकार्मणजीवा एव । 'णिओयाणं भंते ! कइविहा पन्नत्ता ? गोयमा दुविहा पन्नत्ता तं जहा - सुहुमणि ओया य, वायरणिओया य' निगोदाः खलु भदन्त ! कतिविधाः ? निगोदों की वक्तव्यता'कविहाणं भंते । निगोदा पण्णत्ता' - इत्यादि ।
टीकार्थ- गौतम ने इस सूत्र द्वारा प्रभु से ऐसा पूछा है - 'कइविहाणं भंते । निगोदा पण्णत्ता' हे भदन्त । निगोद कितने प्रकार के के कहे गये हैं ? अनन्त जीवों का जो आधार होता है वह निगोद अर्थात शरीर कहा गया है उत्तर में प्रभु ने कहा है- 'गोयमा ! दुविहा णिओया पण्णत्ता' हे गौतम । निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे - 'णिओया य णिओदजीवा य' एक निगोद दूसरे निगोद जीव जीवों के आश्रय विशेष जो हो वे निगोद हैं और जिनके तेजस और कार्मण भिन्न होते हैं वे निगोद जीव हैं । 'णिओयाणं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! निगोद कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! दुविहा प० तं जहा' हे गौतम ! निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं- जैसे- 'सुहुमणिओया यं નિગેાદાનુ કથન
'कविहाणं भंते! निगोदा पण्णत्ता' छत्याहि
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ટીકો—ગૌતમસ્વામીએ આ સૂત્ર દ્વારા પ્રભુશ્રીને એવું પૂછેલ છે કે : 'कइविहोणं भंते ! निगोदा, पण्णत्ता' हे भगवन् ! निगोह व डेंटला अारना કેહેલામાં આવેલ છે ? અન ત ..જીવાના જે આધાર હૈાય તે નિગેાદ અર્થાત્ - શરીર કહેવાય છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે'गोमा ! दुविहा णिओया पण्णत्ता' हे गौतम! निगोह मे अारना उडेवामां 'मावेस छे. 'तं 'जहा' नेम 'णिओया य णिओयजीवाय' थे निगोह भने - ખીજા નિગેાદ જીવાના આશ્રયસ્થાન રૂપ જે હાય તે નિગેાદ કહેવાય છે. અને भेटला तेन्स भने उ लिन्न होय छे ते निगोह व छे. 'णिओयाण भंते ! कतिविधा पण्णत्ता' हे भगवन् ! निगोह डेटा प्रहारना उडेवामां आवेद छे? मा' प्रश्नंना 'उत्तरभां अनुश्री छे - 'गोयमा दुविहा पण्णत्ता तं जहा ' हे गौतम! निगोह मे अारना हेवामां आवे छे. भ- 'सुहुमणिओयाय