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जीवाभिगमसूत्र १०४२ माणि पञ्चपल्योपमानि, माध्यमिकायाम एकोनविंशतिः सागरोपमाणि चत्वारि व पल्योपमानि वाह्यायान्तु पर्पदि एकोनविंशतिः सागरोपमाणि त्रीणि च पल्योपमानि स्थितिः अर्थः स एव-इतोऽन्यत्सहस्रारदेववत् इति । 'कहि णं भंते ! आरण अच्चुयाणं देवाणं तहेव अच्चुए सपरिवारे जाब विहरई' कुत्र खलु भदन्त ! आरणाऽच्युती कल्पौ ? कुत्राऽऽरणोऽच्युतश्च द्वौ देवौ परिवसन्त, इत्यादि प्रश्नः ? भगवानाह-गौतम ! आनत-प्राणतकल्पयोरुपरितनदेशे सपक्षसप्रतिदिशि वहदरहैं। आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति १९ सागरोपम की एवं पांच पल्योपम की स्थिति है मध्यपरिषदा के देवों की १९ सागरोपम की और ४ पल्योपम की स्थिति है और बाह्यपरिषदा के देवों की १९ सागरोपम की और तीन पल्पोपम की स्थिति है बाकी का और सब कथन पूर्व के जैसा है 'कहिणं भंते ! आरण अच्चुया नाम दुवे कप्पा प०' हे भदन्त ! आरण और अच्युत नामले ये दो कल्प कहां पर हैं ? 'कहि णं भंते ! आरण अच्चुयगा देवा परिवसंति' और कहां पर आरण अच्युत देव रहते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा ! आणय पाणयाणं कप्पाणं उरि सपक्खं सपडिदिसिं वह जोयणाइं जाव उप्पइत्ता एत्थणं आरण अच्चुया णामं दुवे कप्पा पन्नत्ता' हे गौतम ! आनत प्राणत कल्पों के ऊपर दिशा विदिशाओं में अनेकों योजनों तक यावत् जाकरके आगत इसी स्थान में आरण अच्युत नामके दो कल्प हैं । 'पाईणपडीणायया उदीण दाहिणविच्छिण्णा अद्ध संठाणसंठिया अच्चिमाली इंगालरासि वण्णाभा' इत्यादि છે. મધ્યમ પરિપદાન દેવેની સ્થિતિ સાડા અઢાર સાગરેપમ અને ૪ ચાર પલ્યોપમની છે. અને બાહ્ય પરિષદાના દેવેની સ્થિતિ ૧૮ સાડા અઢાર સાગરોપમ અને ત્રણ પાપમની છે. બાકીનું બીજુ તમામ કથન પહેલાના २ छ. 'कहिणं भंते ! आरण अच्चुया नाम दुवे कप्पा पण्णत्ता' में भगवन् ? मारण भने अच्युत नामनामे. हे। ४यां मावेसा छ ? 'कहिणं भंते ! आरण अच्चुयगा देवा परिवसति' मन मा२ए। मयुत हवी ४या २९ छ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ.-'गोयमा! आणयपाणयाणं कप्पाणं उवरि सपक्खि सपडिदिसिं वहूई जोयणाई जाव उप्पइत्ता एत्थ णं आरण अच्चुया णामं दुवे कप्पा पण्णत्ता' है गौतम ! मानत प्राप्त पानी ५२ विहिशायामा भने ચેજને સુધી યાવત્ જવાથી ત્યાં આવતા સ્થાનમાં આરણ અશ્રુત નામના मे ४ो छ. 'पाईण पडीणायया उदीण दाहिण विच्छिण्णा अद्ध संठाण संठिया अच्चिमाली इंगालरासिवण्णाभा' त्याहि ॥ 2G ४८ पूर्वथी. सन. पश्चिम