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जीवाभिगम सूत्रे
हे भदन्त ! तत्र जीवविचारे ये ते एवमुक्तवन्तः पञ्चविधाः संसारसमापन्नका जीवाः प्रज्ञप्तास्ते एवं वक्ष्यमाणं वचः 'केचन - २ एकेन्द्रिया:- द्वीन्द्रियाः, श्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियाश्च भवन्ति" इति 'आहंसु' उक्तवन्त: 'से कि fiदिया ? गोमा ! एगिंदिया दुविहा पन्नत्ता - तं जहा - पज्जत्तगा य्-अपज्जत्तगा य- एवं जाव - पंचिंदिया दुविहा- पज्जत्तगा य - भपज्जत्तगा य'
'इस सम्बन्ध में ऐसा कथन है- 'तं जहा - एगिंदिया, बेडंदिया, तेइंदिया, रिंदिया, पंचिदिया' - एकेन्द्रिय जीव, दो इन्द्रिय जीव, तेइन्द्रिय जीव, चौइन्द्रिय जीव और पंचेन्द्रिय जीव- इस प्रकार से ये संसारी जीव पांच प्रकार के हैं । 'से किं तं एगिंदिया हे भदन्त ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोमा ! एगिंदिया दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं- जैसे'पज्जन्तगां य अपज्जन्तगा य' पर्यातक एकेन्द्रिय और अपर्याप्तक एकेन्द्रिय ' एवं जाव पंचिंदिया दुविहा पण्णत्ता' इसी तरह की द्विविधता दो इन्द्रिय जीव से लेकर पञ्चेन्द्रिय जीवों तक में जाननी चाहिये अर्थात् पर्याप्तक दो इन्द्रिय और अपर्याप्तक दो इन्द्रिय, पर्याप्तक इन्द्रिय, और अपर्याप्तक तेइन्द्रिय, पर्याप्तक चौइन्द्रिय और अपसक चौइन्द्रिय, एवं पर्याप्तक पञ्चेन्द्रिय और अपर्याप्तक पश्चेन्द्रिय इनमें जिनके पर्याप्ति नामकर्म का उदय होता है वे पर्याप्तक और
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या संबंधभां मे ं उथन छे - 'तं जहा एगिंदिया, वेइंदिया, तेइंदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया' खे४ ईन्द्रिय वाजा कुवा, मेहन्द्रिय वाजा लवो, त्रायु ઇન્દ્રિય વાળા જીવેા ચારઇન્દ્રિય વાળા જીવા અને પાંચ ઈન્દ્રિય વાળા वो या प्रमाणे या संसारी व पांय प्रहारना छे. 'से किं . ते एगिंदिया' डे लगवन् ! ४ छन्द्रिय वाजा लवो डेंटला अारना छे ? या प्रश्नना उत्तरभां प्रभुश्री छे - 'गोयमा ! एगिंदिया दुविहा पण्णत्ता' डे गौतम ! श्रेष्ठ धन्द्रिय वाणा भव मे अारना उडया छे. 'तं जहा' - 'पज्जत्तगा य अपजत्तगा य' पर्यास अने पर्यास येडेन्द्रिय 'एवं जाव पंचिदिया दुबिहा पण्णत्ता' येन प्रभाषेनु मे अक्षर यागु में इन्द्रिय यथी
લઈને પાંચ ઇન્દ્રિય વાળા જીવાના કથન સુધી સમઝવું અર્થાત્ પર્યાપ્તક એ ઇન્દ્રિય અને અપર્યાપ્તક એ ઇન્દ્રિય, પર્યાપ્તક તેઇન્દ્રિય અને અપર્યાપ્તક તેઇન્દ્રિય, પર્યાપ્તક ચૌઇન્દ્રિય અને અપર્યાપ્તક ચૌઇન્દ્રિય, તથા પર્યાપ્તક પચેન્દ્રિય અને અપર્યાપ્તક પંચેન્દ્રિય આમાં જેમને પર્યાપ્ત નામક ના ઉદય થાય છે.
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