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जीवाभिगमसूत्र एवं निरन्तरं तावद् वक्तव्यं यावद् अनुत्तरोपपातिकविमानानि । 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! देवा कओहितो उपवज्जति, उववाओ नेयम्वो जहा पक्कंतीए तिरियमणुएसु पंचिंदिरासु समुच्छिमवज्जिएसु उववाओ वकतीगमेणं जान अणुत्तरोव०' हे भदन्त ! सौधर्मेशानयोर्देवाः कुतो योनेरुद्धृत्योत्पद्यन्ते ? किं नैरयिकेभ्यः ? इत्यादि इत्थं प्रज्ञापनापष्ठव्युत्क्रान्तिपद इव प्रश्नोत्तरादि वक्तव्यम् । उत्पातस्तथैव नेतन्यो यथा-व्युत्क्रान्तौ तिर्यमनुष्य पञ्चन्द्रियेभ्यः संमूच्छिमवनितेभ्यः। उत्पातो व्युत्क्रान्तिगयानुसारेणैव वक्तव्यो यावदनुत्तरोपपातिक प्रास होते हैं उपचय को प्राप्त होते हैं ऐसा जो कथन है वह पुद्गल की अपेक्षा से कहा गया है ऐसा जानना चाहिये 'सोहम्मीसाणेसु णं जीवा कमोहितो उववनंति' हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान में जीव किस गति से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'उवधाओ नेयव्यो जहा चकंतीए तिरिय मणुएसु पंचेंदिएसु संमुच्छिमवज्जिएसु उववाओ वक्तीगमेणं जाव अणुत्तो' हे गौतम ! समुच्छिम जीवों को छोडकर वाकी के पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से और मनुष्यों में से आकर के जीव सौधर्म और ईशान देवलोक में देवकी पर्याय से उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार से प्रज्ञापना के छठे व्युत्क्रान्ति पद में जैसा उत्पाद कहा गया है उसी प्रकार से वह उत्पाद यहां पर भी कह लेना चाहिये वहां पर ऐसा प्रश्न किया गया है कि हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान में जो देवकी पर्याय से जीव उत्पन्न होते हैं ણેનું કથન ચાવત અનુત્તરપપાતિક વિમાન પર્યન્ત સમજી લેવું. “ચયને પ્રાપ્ત થાય છે, ઉપચયને પ્રાપ્ત થાય છે, એ પ્રમાણેનું જે કથન છે, તે પુદ્ગલની अपेक्षाथी वामां याद छ. तेभ समा. 'सोहम्मीसाणेसु णं देवा कओहिंतो उववजंति' मापन सौधर्म मने शान पक्षामा ७१ ४तिभांथी मावीन. जपन्न थाय छ ? २मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ है-'उव. वाओ नेयव्यो जहा वकंतीए तिरियमणुएसु पंचेदिएसु संमुच्छिमवज्जिएसु उव. वाओ वक्तीगमेणं जाव अणुत्तरो' है गौतम | स भूरिभ वान छोडीन બાકીના પંચેન્દ્રિય તિર્યામાંથી અને મનુષ્યમાંથી આવીને જીવ સૌધર્મ અને ઈશાન દેવલેમાં દેવની પર્યાયથી ઉત્પન્ન થાય છે. આ પ્રમાણે પ્રજ્ઞાપના સુત્રના છઠા વ્યુત્ક્રાંતી પદમાં જે પ્રમાણે ઉત્પાદ કહેવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણેને ઉત્પાત અહીંયા પણ સમજી લેવું. ત્યાં એ પ્રશ્ન કરવામાં આવેલ છે કે-હે ભગવાન્ સૌધર્મ અને ઈશાન કપમાં દેવની પર્યાયથી જે જીવ