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जीवाभिगम सूत्र सनत्कुमारमाहेन्द्रयोर्ब्रह्मलोकेऽपि च देवानां शरीराणि पद्मपक्ष्मवत्-पिशङ्ग कमल किञ्जल्कवद्गौराणि इति भावः । 'वंशलोगे णं भंते ! गोयमा ! अल्लमधुगवण्णाभा वण्णेणं पन्नत्ता एवं जाव गेवेज्जा' ब्रह्मलोके खलु भदन्त ! देवानां शरीराणि ? गौतम ! अल्लमधुकवर्णानि शुक्लानि प्रज्ञप्तानि । एवं यावदीवेयाः सर्वेषां शुक्लानि इति । 'अनुत्तरोववाइया परममुकिल्ला वण्णेणं पन्नत्ता' अनुत्तरोपपातिकानां तु परमशुक्लानि शरीराणि वर्णेन प्रज्ञप्तानि । 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसुदेवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा णामए कोटपुडाण हे गौतम ! इन देवों के शरीर का वर्ण तपे हुए सुवर्ण के वर्ण जैसा होता है 'सणंकुमारमाहिदेसुणं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पण्णत्ता' सनकुमार और माहेन्द्र के देवों के शरीर का वर्ण पद्म के जैसा गोरा होता है अर्थात पिशङ्ग कमल की शर के समान गौर वर्ण का इनका शरीर होता है 'बंभलोगे णं भंते !' हे भदन्त ! ब्रह्मलोक के देवों के शरीर का वर्ण कैसा होता है ? उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! अल्लमधुगवण्णाभा चण्णेणं पण्णत्ता' हे गौतम ! गीले महुया का जैसा वर्ण होता है वैसा ही वर्ण ब्रह्मलोक के देवों के शरीर का होता है एवं जाव गेवेन्जा' शरीर के ऐसे वर्ण होने का यह कथन अवेयक विमानों के देवों तक में जानना चाहिये 'अणुत्तरोववातिया परमसुकिल्ला वण्णेणं प०' परन्तु अनुत्तर विमानवासी जो देव हैं उनके शरीर का वर्ण परमशुक्ल होता है 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु 'देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता' हे भदन्त ! सौधर्म और रत्तामा वण्णेणं पण्णत्ता' गौतम ! म वाना शरीरना व तपावपामा मावेल सोनानागनाको डाय छे. 'सणंकुमारामाहि देसु णं.पउमपम गोरा वण्णेणं पण्णत्ता' સનકુમાર અને મહેન્દ્ર દેવના શરીરને વર્ણ કમળના જેવો ગૌર હોય છે. અર્થાત્ પિશંગ કમળનાર કેસરના જેવા ગોરા વર્ણના તેમના શરીરે હોય છે. बंभलोगेणं भंते ! भगवन् प्रमोना हवाना शरीर को डाय छ ? या प्रश्न उत्तरभा, प्रभुश्री ४ छे -'गोयमा ! अल्ल मधुकगवण्णमा वण्णेणे पण्णत्ता' हे गौतम ! सीसा महुराना रेव पाडाय छे, मेक प्रभागेन। वर्ष ब्रह्माना वाना शरीशनी डाय छे. 'एवं जाव गेवेज्जा' शरी२२। मावा પ્રકારને વર્ણ હવા સંબંધીનું આ કથન શૈવેયક વિમાનના દેવોના કથન पय त सभ से. 'अंणुत्तरोववातिया परमसुकिल्ला वष्णेणं पण्णत्ता' ५२ અનુત્તર વિમાનવાસી જે દેવ છે, તેમના શરીરને વર્ણ પરમ શુકલ હેય छ. 'सोहम्मीसाणेसु णं मते ! कप्पेसु देवणं सरीरंगा वेरिसया गंघेणं पप्पत्ता' 3