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प्रमेयोतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सु. ११० देवशक्तिनिरूपणम्
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२' अत्र द्वितीयसूत्रे वालं - शरीरं छित्वाभित्वेति विशेषः, शेष तथैव, अत्रापि स देवः ग्रथयितु ं न प्रभुः, उभयकारणजन्यस्य कार्यस्य, एकतरस्यापि कारणस्याऽभावेऽभावात् । 'देवे णं भंते ! महिड्डिए पोग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव बाल अच्छित्ता - अभित्ता पभू गंठित्तए ! नो इणट्ठे समट्ठे० ३' देवोहि भदन्त ! महर्द्धिको यावन्महानुभागः वाह्य पुद्गलान् गृहीत्वा पूर्वमेव - बालमच्छित्वाऽभित्वा प्रभुः स्यात् किं दृढवन्धनेन परिवधुम् ? भगवानाह - नायमर्थः समर्थः । ' देवेणं ते ! महिडिए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता - पुण्यामेव वालं छेत्ता भेत्ता पभू गंठिए ? गोयमा ! हंता पभू' देवः खलु भदन्त ! महर्द्धिकः भेत्ता पभू गंठित्तए' हे भदन्त ! महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला कोई देव बाहर के पुद्गलों को नहीं ग्रहण करके एवं पूर्व ग्रहीत शरीर का छेदन भेदन करके क्या उसे दृढबन्धन से बांधने में समर्थ हो सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'णो इण्डे समट्टे' हे गौतम ! यह अर्थ भी समर्थ नहीं है क्योंकि उभय कारण जन्य कार्य एक कारण के अभाव में नहीं हो सकता है' 'देवेणं भाते ! महिड्डीए वाहिरए पुग्गले परियाइत्ता पुवामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गठित्तए' हे भदन्त ! महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला कोई देव बाहिरी पुगलों को ग्रहण करके एवं पूर्वगृहीत शरीर को छेदन भेदन न करके क्या उसे दृढवन्धन से बांधने के लिये समर्थ हो सकता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'णो इट्ठे समट्ठे' हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है ' देवे णं भते ! महिडिए जाब महाणुभागे बाहिरे पोग्गले परियाइत्ता पुण्यामेव बाल
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મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણા વાળા કાઇ દેવ વિના અને પહેલા ગ્રહણ કરેલ શરીરનુ માઁધનથી ખાંધવામાં સમથ થઇ શકે છે?
મહારના પુદ્ગલાને ગ્રહણ કર્યાં છેદન ભેઇન કરીને શુ તેને દ્રઢ આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે
छे है-'णो इणट्टे समट्टे' हे गौतम! या अर्थ पशु समर्थ नथी. भट्टे उलय भरणु भन्य अर्थ मे हारगुना अभावभां थ शस्तु नथी 'देवेण भंते ! महडूढिए बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव वालं अच्छित्ता अभेत्ता पभू गठित्तए' हे भगवन् भहर्द्धि विगेरे विशेषशेोवाणी अ देव महारना युद्धગલાને ગ્રહણુ કરીને તેમજ પહેલા ગ્રહણ કરેલ શરીરને છેદન ભેદન કરીને તેને દ્રઢ ખંધનથી ખાંધવાને સમર્થ થઈ શકે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अलुश्री हे छे –‘णो इणट्टे समट्टे' हे गौतम! या अर्थ' समर्थ' नथी. 'देवे णं भंते ! महिड्रढिए जाव महाणुभागे बाहिरे पोग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव बाल छेत्ता भेत्ता पभू गंठित्तए' हे भगवन् भर्द्धि यावत् भड्डाप्रभावशाली अर्ध
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