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___जीवामिगमसूत्र कुर्वन् पूर्व दिग्द्वारेणाऽनुप्रविशति, 'अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूब गएणं पच्चोरुहति' अनुप्रविश्य पूर्वेण त्रिसोपानप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोति-नन्दां प्रविशति, ‘पञ्चोरुहेत्ता नन्दा प्रत्यवरुह्य-अन्तः प्रविश्य, 'इत्थं पादं पक्खालेति' हस्तौ पादौ प्रक्षालयति नन्दाजलेन, 'हत्थं पादं पक्खालेत्ता' हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य, एग महं सेतं रयतामयं-विमलसलिल पुण्णं' एक महत् श्वेतं अतएव-रजतमयं विमलसलिलपूर्ण व्यपगतसकलमलजलपूर्णम् , 'मत्तगयमुहाकिति समाणं' मत्तगजमुखाकृतिसमानम् मदमत्तवारणमुखाकृति, 'भिंगारं पगेण्हति' भृगारं विशिष्टं जलपात्रं प्रगृह्णाति, भिंगारं पगेण्डित्ता' भृङ्गारं प्रगृह्य, जाइ तत्थ उप्पलाई पउमाई जाव सयसहस्सपताई ताई गेण्डइ' यानि तत्रोत्पलानि पद्मानि कुमुदानि यावत्-पुण्डरीकाणि महापुण्डरीकाणि शतसहस्त्रपत्राणि तानि सर्वाणि पुष्पाणि गृह्णाति, 'ताई गेण्हेत्ता नंदातो पुरखरिणितो पच्चुत्तरेइ नन्दापुष्करिणीतो बहिनि'अणुपविसित्ता' प्रविष्ट होकर 'अणुपविसित्ता' पुष्करिणी में प्रविष्ट होकर 'पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिस्वगएण पच्चोरुहइ' वह उसकी त्रिसोपान पंक्ति से उतर कर उसमें प्रविष्ट हुवा 'पच्चोरुहित्ता हत्थपाई पक्खालेति' प्रवेश करके हाथों और पैरों को धोया 'पक्खालित्ता एगं महं सेले रयणामय विमलसलिलपुण्णं मत्तगय महा कित्तिसलाणं भिंगारं पगिणहति' हाथ पैरों को धोकर उसने चांदी की बनी हुई एक विमल जल से परिपूर्ण शृंगार-झारी को उठाया जिसके मुह की आकृति मदोन्मत्त गजराजके शुण्डादण्ड जैसी थी 'भिंगारं पगेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाईपउमाई जाव सयसहस्सपत्ताई ताइ गिण्हति' भृगार उठाने के बाद फिर उसने जितने भी वहां उत्पल पद्म यावत् शतसहस्त्र पत्तों वाले कमल थे उन सब को ले लिया 'गिण्हित्ता गंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेइ' लेकर फिर वह गंदा
शाना ४२वाले ७२ तभा प्रवेश ध्या. 'अणुपपिसित्ता प्रवेश ४शन. 'पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवगएणं पच्चोरुहई' ते तेनी त्रिसापान 48थी उतरीन तभा प्रवेश ४. 'पच्चोरुहित्ता हत्यपादं पखालेति' तमा प्रवेश ४शन त पोताना डाय ५५ धाया. 'पक्खालित्ता एग महं सेत्तं रययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगय महाकित्तिसमाणं भिंगारं पगिण्हई' डाय ५१ धन तेरी याहीनी मनेस मे નિર્મળ જળથી ભરેલ ઝારી ઉઠાવી કે જેનું મુખ મન્મત્ત હાથીની સૂંઢ
तु. 'भिंगार गेण्हित्ता जाई तत्थ उग्पलाई पउमाई जोव सयसहस्सपत्ताई 'ताई गिण्हंति' आरी सीधा पछी तेथे त्यां 22 Gual, पनी यावत् शत पत्र, सहसपत्री पाणा भयो त त धान. सीधा. 'गिण्हित्ता णंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेई ते ६ ते न पुरिणीयोमाथी मार नीयो.