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' प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. १०१ पुष्करोदसमुद्रनिरूपणम् : उदगें अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलियवण्णाभे पगतीए उदगरसं सिरिधर सिरिप्प• भाय दो देवा महड्डिया जाव पलिओमहिईया परिवति'
पुष्करोदनाम्नि हेतुं पृच्छति-हे भदन्त ! तत्केनार्थेन पुष्करोदः समुद्र .... एव मुच्यते-भगवानाह-पुष्करोदसमुद्रस्य हि उदकम् · अच्छं-पथ्यं जात्यं
नो विजातिमत्-तनुकं स्फटिकवर्णाभम्-प्रकृत्या उदकरसम् प्रज्ञप्तम्, श्रीधर___-श्रीप्रभौ द्वौ च - महद्धिको यावत्पल्योपमस्थितिकौ देवावत्र परिचसतः ग्रह
नक्षत्रपरिवारवच्चन्द्रसूर्याभ्यां गमनमिवाऽभूभ्यां स्वस्वपरिवारसमन्विताभ्यां देवा_ 'भ्यामत्रत्यमुदकमवभासतेऽतः पुष्करोदः समुद्रः० २ पुष्करमिवोदकं यस्यासौ · · हे भदन्त ! इसका नाम पुष्करोद समुद्र ऐसा किस कारण से हुआ । " है ? 'गोयमा ! पुक्खरोदस्स णं समुदस्स उदगे अच्छे, पत्थे जच्चे : तणुए फलिह वण्णामे पगतीए उदगरसेणं' हे गौतम ! पुष्करोदसमुद्र ' का उदक स्वच्छ है पथ्य है जातिवंत है हलका है एवं स्फटिक रत्न के ' जैसा स्वभाव से ही निर्मल है तथा प्रकृति से ही वह मधुर रस वाला - है यहाँ पर 'सिरिधर सिरिपभा य दो देवा महिड्डिया' जाव पलिओ
वर्महितीया परिवसंति, से तेणटेणं जाव णिच्चे श्रीधर और श्रीप्रभ । नाम के दो देव जो कि महर्द्धिक आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाले हैं '. और एक पल्योपम की जिनकी स्थिति है रहते हैं सपरिवार इन देवों
के द्वारा ग्रह नक्षत्रादि परिवार से युक्त चन्द्र और आदित्य से गगन - की तरह जल सुशोभित होता है “से तेणटेणं जाव णिच्चे' इसी कारण 'से हे गौतम ! इसका नाम पुष्करोदसमुद्र ऐसा कहा गया है यावत् " यह नित्य है इसकी व्याख्या जैसी पहले की गई है वैसा ही है। ' 'युथी ४डस छ ? 'गोयमा! पुक्रोदस्स णं समुहस्स उदगे, अच्छे, पत्थे, जच्चे, तणुए, फलिहवण्णाभे पगतीए उद्गरसेणं' है, गौतम ! पुष्४।ह समुद्रनु पाणी સ્વચ્છ છે. પથ્ય છે. જાતિવંત છે. હલકું છે. અને સ્વભાવથી જ તે સ્ફટિક २त्नना नि मने अतिथी त मधु२ २सवा छे. मडीया 'सिरि घर सिरिपभाय- दो देवा जाव महिढिया जाव पलिओवमट्टितिया परिवसंति से तेणढे णं. जाव णिच्चे' श्रीधर सन श्री प्रम नाभना में हवा , रमा महદ્ધિક વિગેરે પૂર્વોક્ત વિશેષણોવાળા છે, અને એક પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા
છે. તેઓ રહે છે. તેઓ પિતાના પરિવાર, સાથે ત્યાં રહેવાથી એ દેવ દ્વારા * * ગ્રહ-નક્ષત્ર વિગેરે પરિવારવાળા ચંદ્ર અને સૂર્યથી આકાશની માફક તેનું પાણી 'सुशामित रहे छे..'से तेणट्रेणं णिच्चे' मे ४२४थी 3 गौतम ! तेनु नाम પુષ્કર સમુદ્ર એ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે. યાવત્ એ નિત્ય છે. તેની વ્યાખ્યા જેમ પહેલા કરવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણે છે. जो० १०१