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जोवामिन ने-'गोयमा' हे गौतम ! 'यणममुहम्म पुग्यमान' लवणोदविडियने 'घायड ग्लंडम्म दीयम्म पुरन्थिमन्दन पञ्चन्थिमंगं मादाए माणईए उपि गन्य णं लवणम्म समुद्रस्य विना नाम दान पन्नन धातकी ममः द्वीपम्य पृधिम्य पश्रिमेन महानदी भीनोवाया उपनि नटेऽत्र सुलु लवणसहस्स स्थाने विजयनाम द्वार माम्ने । तच्च अजोयणाई उड़े उच्चनणं वनारि जोयणाई विऋग्य भणं-एवं नं व मव्यं जहा जयदीरम्म विजयम्म दारसरिसमे. यपि तद् द्वारमुच्चन्वनीयमष्टी योजनानि चन्चारियोजनानि विष्कम्भेग पर्व तदंत्र सर्व यथा जंबु ढीपम्य विजयस्य वार नाम गनुदापि, नत्केनार्थेन भदन्न! समुहस्म पुरस्थिम परत घाइय मंडस्म दीवस्म पुरथिमहस्स पच्चथिमिल्लेणं सीओदाए यहाणईए उप्पि गन्ध णं लवणसमुहस्म विजए णामं दार पण्णत्ते' हे गोनम : लवणसमुत्र की पूर्व दिशा के अन्त में नथा धानकी ग्वण्ड द्वीप के पूर्वाध से पश्चिम दिशा में सीतोदा महा नदी के ऊपर लवणसमुद्र का विजय नानका द्वार है 'नच्च अहः जोयणाई उहवं उच्चत्तण, चत्तारि जोयणाई विश्वंभेणं एवं ने भी मत्वं सहीवस्स विजयदारस्म' यह द्वार आठ योजन का ऊंचा है। चार योजन का चौडा है हे भदन्त ! इस हार का नाम विजयवार ऐसा क्यों कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! यहाँ जैसा कथन जम्वृद्धीप के विजयद्वार के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही वह सब कयन यहां के इस विजय हार के सम्बन्ध में भी कर लेना चाहिए इस विजयद्वार पर महर्दिक आदि विशेषणों वाला विजय हुये प्रयोत्तरपूर्व प्रगट ४२वामा भाये छ, 'कहिलं ते ! लवणसमुस्स विजए णामं दार पण्णत्त' लापन् ! सपाटुसमुनु वियहा२ मा छ ? 'गोय्मा ! लवणसमुहम्म पुरत्यिमपेरंते घायइण्डत दीवास पुरन्थिमन्स पच्चन्थिमिल्लेणं सीओडाए महागई। यिं एल्य णं लवणसनुहन्त विजए णामं दारे पण्णत्ते' गौतम ! स नी पूर्व दिशाना अंतभा तया घाती હીપના પૂર્વાર્ધથી પશ્ચિમ દિશામાં અને સદા મહાનદીની ઉપર લવ न विन्य नामर्नु २ गावेस छे. 'तच्च अदु जोग्गाई उड्ई उच्चत्तण चत्तारि जोषणाई विनयभणं एवं नं चेव सञ्चं जंबुद्दीयम्स विजयझरस' मा दार આઠ રોજન ઉંચું છે, ચાર એજન પહેણું છે. હે ભગવન્! આ દ્વારનું નામ વિજયકાર એ પ્રમાણે કેમ કહેવાયેલ છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! જંબુદ્દીપના વિજ્યારસંબંધનું કથન જે પ્રમાણે પહેલાં કહેવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણેનું એ તમામ કથન અહીંના આ વિજ્યદ્વાર સંબંધમાં પણ કહી લેવું. આ વિજયદ્વારની ઉપર મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણના વિજય