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प्रमेगद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.८६ वेलंधरनागराजस्वरूपनिरूपणम् ५६९
सम्प्रति-शंखनाम्न आवासपर्वत वक्तव्यता प्रस्तूयते-'कहि णं भंते ! संखस्स वेलरणागरायस्स संखे णामं आवासपव्यए पन्नत्ते' कुत्र खलु भदन्त ! शंखनाम्नो वेलंधरभुजगेन्द्रनागकुमारराजस्य शंखो नामाऽऽवासपर्वतः प्रज्ञप्तः, भगवानाह-'गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चस्थिमेणं बायालीस जोयणसहस्साई एत्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णाम आवासपव्वए शिविका राजधानी का और इस राजधानी में रहने वाले अनेक देव देवियों का आधिपत्य करता हुआ सुख से अपने समय को निकालता है। शिविका नामकी राजधानी दगभास पर्वत की दक्षिण दिशा में हैं
और वह अन्य लवणसमुद्र में हैं इसका पूरा वर्णन विजयराजधानी के जैसा ही है इस राजधानी में शिवक नामका देव रहता है इस कारण इस पर्वत का नाम दकभास ऐसा कहा गया है इस पर्वत के सम्बन्ध में अव. शिष्ट और सब कथन गोस्तूप पर्वत के कथन जैसा ही जानना चाहिये.
शंख नामक आवास पर्वत की वक्तव्यता
'कहि णं भंते ! संखस्स वेलंधरनागराजस्स संखे नाम आवासपच्चए पण्णत्ते' हे भदन्त ! शंख नाम के वेलन्धर नागराज का शंख नामका आवासपर्वत कहां पर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! जंबूद्दीवे दीवे मंदपव्वयस्स पञ्चत्थिमेणं बायालीसं जोयणसहस्साई एत्थणं संखस्स वेलंधरणागरायस्स-संखे णाम आवासंपन्चए पन्नत्त' हे गौतम ! जंबूद्वीप नाम के द्वीप में जो मन्दर શિબિકા રાજધાનીનું એ રાજધાનીમાં રહેવાવાળા અનેક દેવ અને દેવિનું. અધિપતિ પણું કરતા થકા સુખ પૂર્વક પિતાના સમયને વિતાવે છે. શિબિકા નામની રાજધાની, દગભાસ પર્વતની દક્ષિણ દિશામાં છે. અને તે બીજા લવણે સમુદ્રમાં છે. તેનું પુરું વર્ણન વિજ્યારાજધાનીના વર્ણન પ્રમાણે છે. આ રાજધાનીમાં શિવક નામના દેવ રહે છે. તેથી એ પર્વતનું નામ દકભાસ એ પ્રમાણે થયેલ છે. આ પર્વત સંબંધી બાકીનું તમામ કથન ગેપ પર્વતના કથન પ્રમાણે જ છે.
શંખ નામના આવાસ પર્વતનું કથન - 'कहि णं भंते ! संखस्स वेलंधरनागराजस्स संखे नाम आवासपर्वए पण्णत्ते હે ભગવદ્ શંખ નામના વેલંધર નાગરાજને શંખ નામને આવાસ પર્વત કયાં मावेश छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री ४९ छ है-'गोयमा । जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वेयस्स पच्चत्थिमेणं बायालीसं जोयणसहस्साई एत्थणं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णाम आवासपव्वए पन्नत्ते' हे गौतम ! मूद्वीप नामना द्वीपमा २ जी० ७२