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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. ९० धातकीपण्डे सूर्यचन्द्रयोर्वर्णनम् ६२५ बहूनि उत्पलानि तद् योगात्-चन्द्रवर्णः चन्द्रद्वीपः कथ्यते । अपि च-चन्द्रो नामऽत्र देवो महर्द्धिको यावत्पल्योपमस्थितिकः परिवसति स च सामानिकादीनां यावदाधिपत्यं कुर्वन् विहरति चन्द्रस्वामित्वात् चन्द्रद्वीपो व्यवहियते, अन्यच्च गौतम ! चन्द्रद्वीपः शाश्वतः यो न कदापि नासीत् न भवति-न भविष्यति, किन्तु आसी दस्ति भविष्यति, कारणैरेभिश्चन्द्र द्वीपः २ इति । 'रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे-सेसं तं चेव' कुत्र खल्लु भदन्त चन्द्राभिधाना राजधान्यः ? भगवानाह-हे गौतम ! धातकीखण्ड आदि हैं सो उन सब का वर्ण चन्द्रमा के जैसा है अतः इस निमित्त को लेकर इन द्वीपों का नाम 'चन्द्रदीप' ऐसा हो गया है दूसरी बात यह है कि इन द्वीपों में महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले चन्द्रदेव नामके देव रहते हैं इनकी आयु एक पल्योपम की है ये चन्द्रदेव अपने अपने सामानिक आदि देवों के आधिपत्य आदि को करते हुए वहां पर सुख पूर्वक रहते हैं। तीसरी बात यह भी है कि इस प्रकार के नाम होने का जो निमित्त प्रकट किया गया है वह एक रूप से नहीं है क्योंकि ऐसा इनका नाम अनादि काल से ही चला आ रहा है यह पहिले भूतकाल में नहीं था, अब भी वर्तमानकाल में नहीं है आगे भी भविष्यकाल में नहीं रहेगा सो ऐसी बात नहीं है क्योंकि यह तो पहिले भी था अब भी है और आगे भी ऐसा ही रहेगा 'रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे सेसं तं चेव' जव गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा-हे भदन्त ! यहां चन्द्र नामकी राजधानी कहां पर है ? उत्तर में प्रभु ने कहा-हे गौतम ! धातकीલઈને આ દ્વીપનું નામ “ચન્દ્રદ્વીપ” એવું થયેલ છે. બીજી વાત એ છે કેઆ દ્વીપમાં મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષ વાળા ચંદ્ર દેવ નિવાસ કરે છે. તેનું આયુષ્ય એક પલ્યોપમનું છે. આ ચંદ્રદેવ પિતપોતાનાં સામાનિક વિગેરે દેવેનું અધિપતિપણું વિગેરે કરતા થકા ત્યાં સુખપૂર્વક રહે છે. ત્રીજી વાત એ છે કેઆવા પ્રકારનું નામ થવાનું આ છે કારણ બતાવવામાં આવ્યું છે, તે એકજ કારણ નથી કેમકે-એ પ્રમાણેનું એનું નામ તેઓનું અનાદિ કાળથી જ ચાલતું આવે છે. તે ભૂતકાળમાં ન હતું, વર્તમાનમાં નથી અને ભવિષ્યમાં પણ રહેશે નહીં એમ નથી. કેમકે એ તે ભૂતકાળમાં હતું. વર્તમાન કાળમાં છે, અને ભવિષ્ય
जमा रहे. 'रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं अण्णमि धायइसंडे दीवे सेस तं चेव' न्यारे गौतमस्वामी प्रभुश्रीन से पूछ्यु-डे मापन मा यद्र। નામની રાજધાની ક્યાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીએ કહ્યું કે
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