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..............जीवामिगमसूत्र सप्ताऽष्टौ पढ़ान्यपसृत्या. 'वामं जाणुं अंचेइ'-चामं जानु मञ्चति उत्पाटयति, 'अंचित्ता दाहिणं, जाणुं धरणितलंसि णिवाड़ेइ'-अञ्चयित्वा दक्षिणं जानु.धरणितले - भूमौ निपातयति, 'तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवाढेइ'-त्रिः कृत्वो वारत्रयं भूमौ मस्तकं निपातयति नमयति, धरणितलंसि नमित्ता ईसि पच्चुण्णमइ भूमौशिरो नमयित्वा ईपत्-प्रत्युम्नमयति, पच्चुण्णमित्ता, कडयतुडियर्थभियाओ भुयाओ पडिसाहरति-ईपत्प्रत्युनमय कटकत्रुटित स्तंभितौ भुजौ प्रतिसंहरति-सङ्कोचर्यात, 'पडिसाहरेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु' एवं वयासी'. भुजौ-संहृत्य करतलपरिगृहीत शिरसावर्त मस्तकेऽञ्जलिं निधाय-एवं वक्ष्यमाणं बचोऽवादीत् - 'नमोत्थुणं अरिहंताण' नमोऽतु-अभयः, 'भगवंताणं जाव सिद्धिपयाई ओसरई': स्तुति करके फिर वह सात आठ पैर आगे सरक गया
और सरक कर आगे-जाकर 'वामं जाणु अंचेइ', उसने अपनी बाई जानु को पैर को ऊपर उठाया 'अचित्ता- दाहिणं जाणु धरणितलंसि णिवाडेई' और उठाकर दाहिनी जानु युक्त पैर को जमीन पर रखा. फिर उसने तिखुतो मुद्धागं धरणितलंसि णिवाडेइ' - अपने मस्तक.को तीन बार जमीन पर झुकायां नमाया 'धरणि तलंसि नमित्ता' मस्तक को तीन बार जमीन पर नमाकर. फिर वह. 'इसिपच्चुण्णमई' कुछ, ऊंचा उठा 'पुच्चुण्णमित्ता' कुछ ऊंचा उठकर 'कडयतुडिय थभियाओ भुयाओ, पडिसाहरइ' फिर उसने अपनी कटक और त्रुटित से स्तभित दोनों भुजाओं को, पसारा पडिसाहरिता करतलपरिग्गहिय , सिरसावृत्तं मत्थए, अंजलि का एवं वयासी' पसार कर, उनकी अंजली बनाई और उसे मस्तक पर घुमाया फिर वह इस प्रकार से कहने लगा 3AAN, FAIA--सीया, अनेमे प्रमाणे .. Hel ordP-On 111 ०४४न 'वाम जाणु,अंबेइ' ते पाताना मी नुन ने पानी ७५२ २31वी 'अंचित्ता दाहिणं जाणु घरणितलंसि णिवाडेइ' भने मेरी पीर भL and २. पाथी नाय मीन५२ २०५ो. ते पछी तेथे 'तिक्खुत्तो मुद्धाणं-धरणितलंसि णिवाडेइ' पोताना भरत ने पार भीन त२६ नभायु 'धरणितलं सि नमित्ता' भस्तन वार मीन ५२ नभावीन ते पछी ते.'इसि पच्चुण्णमई' ४४
याथये। पच्चुण्णमित्ता' ५४४ या यधने, 'कडय तुडिय थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ' ते पछी तेथे पातानी ४८४ भने त्रुटित थी स्तमित मेवी मन्ने सुन्तमा नसावी. 'पडिसाहरित्ता करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं-मत्यए अंजलिं कट्ठ एवं वयासी' साथ दावीन तेनी Aanel मनाची अने तने पोताना भरत, ५२ १२वी तपछी ते २ अभाणे वा साया, 'णमोत्थु-ग' अरिहताणं