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जोवाभिगमस्से तद्वासिनो यथा मुखमासते-शेरते-त्वक्परिवर्नयन्ति-निपीदन्ति-विहरन्ति०) ६४ सूत्रवत् । 'तेसिणं वहुसमरमणिज्ज भूमिभागाणं' तेषां खलु बहुसमरमणीयभूमिभागानाम् 'पत्तेयं-२' प्रत्येकर-२ 'पासायपढें सगा पन्नत्ता' प्रासादारतंसकाः प्रज्ञप्ताः ते च-'सड बावट्टि जोयणाई उर्दू उच्चत्तेणं'-सार्ध द्वाषष्टियोजनानि ऊर्ध्व मुच्चत्वेन 'एकत्तीसं जोयणाई कोसंच विक्खंभेणं-एकत्रिंशद्योजनानि क्रोशंच विष्कम्भेण 'मणिपेढिया दोजोयणिया' तस्मिन् प्रासादावतंसके मणिपीठिकैका द्वियोजनप्रमाणा (तस्यां मणिपीठिकायामेकं काञ्चनदेवस्य सिंहासनं तच्चतुर्दिक्षु सामानिकसहस्राणा मग्रमहिपीणा मनीकाधिपतीनां योग्यभद्रासनानि यथायथं वक्तव्यानि) 'सीहासणं सपरिवारा' सिंहासनं सपरिवारमिति देव, देवियां तथा वहां के रहने वाले और भी प्राणी सुख पूर्वक बैठते उठते रहते हैं, सोते हैं, आराम करते हैं और जिस तरह से इन्हें सुख मिलता है इस तरह से रहते हैं । 'तेसिं बहुसमरमणिज्ज भूमिभागाणं' उन बहुसन रमणीय भूमिभागों में से 'पत्तेयं २' प्रत्येक भूमिभाग में 'पासायवडेंसगा पन्नत्ता' प्रासादावतंसक हैं वे प्रासादावतंसक-'सडवावडिं जोयणाई उई उच्चत्तण' ६२॥ योजन के ऊंचे हैं 'एकत्तीसं जायणाई कोसंच विक्लभेणं' ३१। योजन के लम्बे हैं। 'मणिपेढिया दो जोगणिया' एक २ प्रासादावतंसक में दो योजन प्रमाण एक २ मणिपीठिका है इस मणिपीठिका पर एक कांचन देव का सिंहासन है इस सिंहासन की चारों दिशाओं में हजारों सामानिक देवों के, अप्रमाहिषियों के एवं अनीकाधिपत्तियों के योग्य भद्रासन हैं यही घात 'सिंहासणं सपरिचारा' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई हैं। ત્યાંનારહેવાવળા બીજા પણ પ્રાણિ સુખપૂર્વક બેસે છે. ઉઠે છે. અને રહે છે. સુવે છે. આરામ કરે છે. અને જે રીતે તેઓને સુખ જણાય છે. એ રીતે. तेस। २ छ. 'तेसिं बहुसमरमणिब्ज भूमिभागाणं' में पहुसभरमनीय भूमि मागोमांथी पत्तेयं पत्तेय' ४२४ भूमिलामा 'पासायवडेंसगा पण्णत्ता' प्रासा. हातस। छे. मे प्रासाहावत'सो 'सद्धवावहि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तण' १३॥ साडी मास योन या . 'एकनीसं जोयणांई कोसं च विक्खंभेणं' 31 सपा नेत्रीस योग- Rii छे. 'मणिखेढिया दो जोगणिया' हरे ४२४ प्रासाવર્તાસકમાં બળે જન પ્રમાણવાળી મણિપીઠિકાઓ છે. એ મણિ પીઠિકા, એની ઉપર કાંચન દેવનું એક સિંહાસન છે. એ સિંહાસનની ચારે દિશાએ હજારો સામાનિક દેના, અગ્રમહિષિના અને અનીકાધિપતિના સિંહા सना छे. अर्थात् मद्रासना छे. सर पात 'सीहासणं सपरिवाग' २॥ सूत्र