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प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७० विजयद्वारनिरूपणम् त्मरक्षका इति, 'गुत्तपालिया' गुप्ताः अप्राकाश्यंगताः पालिकाः परिखादयो येषां ते गुप्तपालिकाः 'जुत्ता' युक्ताः स्वमनोनीतसेवकैरुपेताः 'जुत्तपालिया' युक्तपालिताः युक्ताः परस्परं बद्धा नतु-बृहदन्तरालापालिः सेतुर्येपान्ते, 'पत्तेयं२ प्रत्येयं २ 'समयतो विणयतो' समयविनयाभ्याम् "किंकरभूयाविव चिट्टति' किंकरा इव तेऽमरास्तिष्ठन्ति, नेमे किंकराः किन्तु-शिष्टाचारवन्तो विनीताश्चात एतै विजयो देवः संमान्यते, यतोहि एतेपामपि साकमनेन सम्मानासनादीनि शास्त्रे लभ्यन्ते, एतेषां परिचयार्थ प्रश्नः 'गोयमा' गौतम ! इत्थं संवोध्य भगवत उत्तरम् । तथाहि-'विजयस्स णं भंते ! देवस्स' हे भदन्त ! विजयदेवस्य क्खगा' अंगरक्षक हैं 'रक्खोवगा' उसके रक्षा कर्म में निरत है 'गुत्ता गुत्तपालिया' ये विजयदेव के अङ्गरक्षक हैं। इस प्रकार से अन्य देव इन्हें नही जानते तथा इनकी परिखा आदि को भी कोई नहीं जानता क्यों कि वह इनकी गुप्त रूप में रहती है 'जुत्ता' ये स्वमनोनीत सेवकों से युक्त होते हैं 'जुत्तपालिया' तथा इनकी जो सेतु रूपपालि हैं वह परस्पर में बद्ध रहती है बहुत अन्तराल वाली नहीं होती है ये पत्तेवर प्रत्येक आत्मरक्षकदेव 'समयतोविणयतो किंकरभूताविव चिहति' अपने आचार के अनुसार विनय पूर्वक किङ्कर के जैसे होकर वहां बैठे रहते हैं वैसे ये उसके किंङ्कर नहीं हैं ये तो शिष्टाचार वाले और विनीत हैं अतः इनके द्वारा विजय देव सम्मानीत होता है विजय देव के समान ही इनकी समानता होती है और इनके समान ही इनके आसन आदि है ऐसा शास्त्रों में देखा जाता है अब गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं'विजयस्स णं भंते ! देवस्स केवतिथं कालं ठिती पण्णत्ता' हे भदन्त !
मात्मरक्ष हे विषय उपना 'आयरक्खगा' 41 २क्ष ता 'रक्खोवगा' તેઓ વિજ્ય દેવના અંગરક્ષક છે એ પ્રમાણે અન્ય દેવે તેમને જાણતા નથી તથા તેઓની પરીખા વિગેરેને પણ કઈ જાણતું નથી. કેમકે તે ગુપ્ત રીતે २ छे. 'जुत्ता' से पाताना मनोनीत सेवीथी युस्त २९ छे. 'जुत्तपालिया' તથા તેઓની સેતુ રૂપ જે પાળે છે તે એક બીજાને સંબંધિત રહે છે. पधारे ५७ता मतिरावाजी खाती नथी. मे 'पत्तय पत्तेयः ४२४ मात्मरक्षा है। 'समयतो विणयतो किकरभूता विवचिठ्ठति' पोताना न्याया२ मनुसार વિનય પૂર્વક સેવકેની જેમ ત્યાં બેસી રહે છે. આમ તે તે તેઓના સેવકો નથી. તેઓતો શિષ્ટાચાર વાળા અને વિનયાન્વિત છે. તેથી તેઓ દ્વારા વિજય દેવ સન્માનીત થાય છે. વિજય દેવની સરખાજ તેઓ છે. અને તેઓના સમાનજ તેઓના આસન વિગેરે છે. એ પ્રમાણે શાસ્ત્રોમાં જોવામાં આવે છે,