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38 / जैन समाज का वृहद् इतिहास
उक्त आचायों के अतिरिक्त आचार्य सुबाहुसागर जी, आचार्य निर्मल सागर जी, आचार्य शान्ति सागर जी अलवाड़ा वाले, आचार्य सुमतिसागर जी जैसे और भी दिगम्बरावार्य हैं जिनकी साधना एवं उपदेशों से समाज को सतत लाभ मिल रहा है।
उपाध्याय परमेष्ठी
आचार्यों के पश्चात् उपाध्याय भरत सागर जी, उपाध्याय ज्ञान सागर जी एवं उपाध्याय कनकनन्दि जी महाराज साधु जगत में विशेष प्रतिष्ठित है। उपाध्याय भरतसागर जी महाराज, आचार्य विमलसागर जी के संघ में उपाध्याय है। सिद्धान्तों के अपूर्व ज्ञाता एवं ओजस्वी वक्तृत्व कला के धनी है। संघ को आचार्य श्री के पश्चात् आपका ही निर्देशन प्राप्त होता है। संघ को एवं समाज को आपसे विशेष आशायें हैं ।
उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज ज्ञान-ध्यान- तपो रक्त लक्षण वाले साधु है। आप स्वतन्त्र संघ के स्वामी है। मुनि श्री वैराग्यसागर जी आपके संघ में है। ज्ञानसागर जी अगाध ज्ञान के भण्डार, मधुर वक्तृत्व कला के धनी एवं परम तपस्वी साधु है। वे जहाँ कहीं भी विहार करते हैं अपनी अद्भुत द्वाप छोड़ देते हैं। गोष्ठियों का आयोजन आपकी ही प्रेरणा का सुफल है। विद्वानों को आपका सहज आशीर्वाद मिलता रहता है। आप युवा साधु हैं। आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) की परम्परा के प्रति अधिक झुकाव है।
एलाचार्य उपाध्याय कनकनन्दि जी महाराज, आचार्य कुंथुसागर जी के संघ में विराजते है। दिन-रात लेखनी हाथ में रहती है और कुछ न कुछ लिखा ही करते हैं। आपकी लेखनी सशक्त है। आपकी प्रमुख कृतियों में धर्म ज्ञान एवं विज्ञान, पुण्य-पाप मीमांसा, विश्वतत्व विज्ञान, निमित्त उपादान मीमांसा के नाम प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त 20 से भी अधिक कृतियाँ लिखी हुई तैयार हैं तथा प्रकाशन के क्रम में है।
आर्यिका माताजी :
वर्तमान युग इस दृष्टि से सौभाग्यशाली है कि समाज में विदुषी आर्यिकाओं की संख्या में आशातीत वृद्धि हो रही है। गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमति माताजी, आर्यिकारत्न विशुद्धमती माताजी, आर्यिका सुपार्श्वमती जी, आर्यिका विजयमती जी, आर्थिका स्याद्वादमती जी, आर्थिका विशुद्धमती जी (द्वितीय), जैसी आर्थिकाओं ने साधना के क्षेत्र में एवं ज्ञान के क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ प्राप्त की है वह कल्पनातीत है। भगवान महावीर के पश्चात् एवं 50 वर्ष पूर्व तक आर्यिकाओं के बहुत कम नाम मिलते हैं। आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने अष्टसहस्त्री जैसे न्यायशास्त्र के कठिन ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करके उसका सम्पादन किया है, इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान एवं अन्य पूजा-पाठ लिखकर समाज में धार्मिक विधि-विधानों को लोकप्रिय बनाने में अपनी अहं भूमिका निभाई है । हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की संरचना आपकी सूझ-बूझ एवं आशीर्वाद का ही मूल है। अभी आपने मेरी जीवन गाथा"