Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८३ स्थापनाप्रमाणनिरूपणम् कुलनाम पाषण्डनामगणनाम जीवितहेतुनामाभिधायिकनामभेदेन सप्तविधं प्रज्ञप्तम् । अयं भावः-नक्षत्र देवता-कुलगणादीन्याश्रित्य यकस्यचिन्नामस्थापन क्रियते, सा इह स्थापना गृह्यते, सैव प्रमाणं तेन हेतृभूतेन सप्तविधं नाम निष्पद्यते इति । तत्र
अब सूत्रकार स्थापना प्रमाण से जो नाम निष्पन्न होता है उसके विषक में कहते हैं-" से किं तं ठवणप्पमाणे" इत्यादि
शब्दा-(से किं तं ठवणप्पमाणे ?) हे भदन्त ! स्थापना प्रमाण से जो नाम निष्पन्न होता है वह कितने प्रकार का होता है ? (ठवणप्पमाणे सत्तविहे पण्णत्ते) स्थापना प्रमाण से जो नाम निष्पन्न होता है, वह सात प्रकार का कहा गया है (तंजहा) जैसें (नक्खत्त देवयकुले पासंडगणे य जीवियाहेउं । आभिप्पाइयणामे ठवगा नाम तु सत्तविहं) नक्षत्र नाम देवनाम, कुलनाम, पाषण्डनाम, गणनाम, जीवितहेतुनाम, अभिप्रायिकनाम । तात्पर्य यह है-नक्षत्र देवता, कुल, गण, आदि का आश्रय करके जो किसी के नाम का स्थापन किया जाता है, वह यहां स्थापना से गृहीत हुआ है। यह स्थापना ही प्रमाण है । इस हेतुभूत स्थापना प्रमाण से सात प्रकार का नाम निष्पन्न होता है । इन सप्तविध नामों के बीच में नक्षत्रों को आश्रित करके जो नाम स्थापित किया जाता है-उसे अब सूत्रकार कहते हैं
હવે સૂત્રકાર સ્થાપના પ્રમાણુથી જે નામ નિષ્પન્ન થાય છે તે વિષે કહે છે"से कि त ठवणापमाणे" त्यात
शहाथ-(से कि त ठवणापमाणे ?) 3 R'त ! स्थापना प्रमाथी २ નામ નિષ્પન્ન થાય છે તેના કેટલા પ્રકાર હોય છે?
उत्तर-(ठवणप्पमाणे सत्तविहे पण्णत्ते) स्थापनाप्रमाथी २ नाम निपान थाय छे, ते सा1 अपामा मा०यां छे. (तजहा) २ (नक्खत्त देवयकुले पासंडगणे य जीवियाहेउं । आभिप्पाइयणामे ठवणानाम तु सत्तविहं) नक्षत्रनाम, हेवनाम, असनाम, नाम, आशुनाम, तहेतुनाम, અભિપ્રાયિકનામ તાત્પર્ય એ છે કે નક્ષત્ર દેવતા, કુલ, ઠાણ વગેરેના આધારે જે નામની સ્થાપના કરવામાં આવે છે. તે અહીં સ્થાપના શબ્દથી ગૃહીત થયેલ છે. આ સ્થાપના જ પ્રમાણ છે. આ હેતુભૂત સ્થાપના પ્રમાણથી સાત પ્રકારના નામે નિષ્પન્ન થાય છે. આ સવિધ નામમાં નક્ષત્રના આધારે જે નામની સ્થાપના કરવામાં આવે છે, સૂત્રકાર હવે તે વિષે કહે છે,
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