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पिंडनियुक्ति का शताधिक बार पारायण करना पड़ा तथा मूल द्वारगाथा की व्याख्या कहां तक चलती है, उसे स्मृति में रखना पड़ा, जैसे आधाकर्म से सम्बन्धित मूलद्वार गाथा (६०) की व्याख्या १२४ गाथाओं में चलती है। अनेक गाथाओं के बाद भी पूर्ववर्ती द्वार गाथा की व्याख्या का संकेत टीकाकार ने दे दिया है अतः यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि टीकाकार के बिना नियुक्ति की गाथा-संख्या का निर्धारण एवं भाष्यगाथा का पृथक्करण अत्यन्त दुरूह कार्य था। इसके अतिरिक्त अन्य स्वतंत्र नियुक्तियों का गहन अध्ययन, सम्पादन तथा उनकी रचना-शैली भी नियुक्ति की गाथा-संख्या के निर्धारण में हेतुभूत बने हैं। • पिण्डनियुक्ति की अनेक गाथाएं निशीथ भाष्य आदि में संक्रान्त हुई हैं। वहां पिण्डनियुक्ति की कुछ गाथाओं के लिए चूर्णिकार ने भाष्यकार का उल्लेख किया है। विषय की क्रमबद्धता की दृष्टि से भी वे भाष्य की प्रतीत होती हैं अतः कहीं-कहीं पृथक्करण का आधार अन्य व्याख्या ग्रंथ भी बने हैं। • मुख्य शब्द के एकार्थक लिखना नियुक्तिकार का भाषागत वैशिष्ट्य है। विषय से सम्बद्ध एकार्थक वाली गाथाओं को नियुक्तिगाथा के क्रम में रखा है, जैसे गा. ५१ में एषणा तथा ६१ में आधाकर्म के एकार्थक। • स्वतंत्र रूप से मिलने वाली नियुक्तियों की भाषा शैली से स्पष्ट है कि निक्षेपपरक गाथाएं लिखना नियुक्तिकार का अपना वैशिष्ट्य है। मूल सूत्र में आए शब्द का नियुक्तिकार निक्षेप के द्वारा अर्थ-निर्धारण करते हैं। पिण्डनियुक्ति चूंकि स्वतंत्र ग्रंथ है लेकिन इसमें भी प्रथम संग्रह गाथा में आए शब्दों एवं मुख्य विषयों के निक्षेप प्रस्तुत किए गए हैं। यद्यपि भाष्यकार भी निक्षेपपरक गाथाएं लिखते हैं लेकिन अधिकांश निक्षेपपरक गाथाएं नियुक्ति की प्रतीत होती हैं।
ग्रंथकर्ता द्वारा मूल निक्षेप का उल्लेख करने के बाद द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि की व्याख्या नियुक्तिकार एवं भाष्यकार दोनों की हो सकती है, विशेषावश्यक भाष्य में स्पष्ट लिखा है कि नियुक्ति का विषय नाम आदि का निक्षेप करना है, शेष अर्थ का विचार करना नहीं। अत: द्रव्य और भाव उत्पादना (१९४/१-३) तथा साधर्मिक शब्द के विविध निक्षेपों की व्याख्या करने वाली गाथाएं। (७३/१-२२) भाष्य की होनी चाहिए।
जहां कहीं एक ही शब्द का दो बार निक्षेप हुआ है, वहां स्पष्ट रूप में एक भाष्य की होनी चाहिए, जैसे पिण्डनियुक्ति की तीसरी गाथा में नियुक्तिकार ने पिण्ड शब्द के चार और छह निक्षेपों का उल्लेख करके उसकी प्ररूपणा करने की प्रतिज्ञा की है, ३/१ में पुनः छह निक्षेपों का संकेत है। नियुक्तिकार ऐसी पुनरुक्ति नहीं करते अत: यह गाथा भाष्य की होनी चाहिए क्योंकि भाष्यकार ने कुलक के दृष्टान्त से इसे स्पष्ट किया है।
१. विभा ९६३, टी पृ. २२६ ।
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