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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
टीकाकार मलयगिरि ने १८ स्थलों पर भाष्यकृद् या भाष्यकार का उल्लेख किया है। इस उल्लेख के आधार पर यह अनुमान तो लगाया जा सकता है कि भाष्य लिखे जाने के बाद भी कुछ समय तक नियुक्ति का स्वतंत्र अस्तित्व था लेकिन मलयगिरि के उल्लेख के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि मात्र उतनी ही भाष्य-गाथाएं हैं, जितनी गाथाओं के बारे में आचार्य मलयगिरि ने भाष्यगाथा का उल्लेख किया है क्योंकि व्याख्याकार सब स्थानों पर भाष्यकार का उल्लेख करे, यह आवश्यक नहीं है।
___ भाष्य गाथाओं की संख्या प्रकाशित टीका की संख्या से अधिक होनी चाहिए क्योंकि प्रकाशित टीका में जहां-जहां टीकाकार ने भाष्यगाथा का उल्लेख किया है, उन गाथाओं के आगे भाष्य के क्रमांक लगा दिए गए हैं लेकिन पिण्डनियुक्ति का गहराई से सांगोपांग अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि इसमें नियुक्ति की गाथाएं ३२४ होनी चाहिए। बाकी की अधिकांश गाथाएं भाष्य की अथवा प्रसंगवश विषय के अनुरूप अन्य ग्रंथों की गाथाएं जोड़ दी गई हैं।
यद्यपि एक ही भाषा-शैली में लिखे गए दो ग्रंथों को अलग-अलग करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है, फिर भी गाथाओं के पौर्वापर्य एवं उनके प्रक्षिप्त अंश को नियुक्तिगाथाओं से पृथक करने का प्रारम्भिक किन्तु श्रमसाध्य कार्य करने का प्रयत्न अवश्य किया गया है। जैसा कि भाष्य गाथाओं के प्रारम्भ में उल्लेख किया गया है कि पृथक्करण के संदर्भ में यह दावा नहीं किया जा सकता कि यह पूर्णतः ठीक ही हुआ है फिर भी यह प्रथम प्रयास भविष्य में शोध करने वालों के लिए मार्गदीप अवश्य बनेगा। इस संदर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पंडित दलसुख भाई मालवणिया की २५.१.८५ को आचार्य तुलसी को भेजे गए एक संवाद की कुछ पंक्तियां उद्धरणीय हैं-"समणी कुसुमप्रज्ञा ने भाष्य से नियुक्ति के पृथक्करण का कार्य बड़े परिश्रम से किया है। यह उनका प्रथम प्रयास है, फिर भी यथार्थ तक पहुंचने का पूरा प्रयत्न किया है। विद्वानों के समक्ष जाने से इसकी अच्छी समालोचना कर सकेंगे, जिससे इसकी दूसरी आवृत्ति में निर्णय करने एवं संशोधन में सुविधा होगी। कठिन प्रयत्न के बिना यह संभव नहीं है कि नियुक्तियों का पृथक्करण हो सके। इस कार्य में उन्होंने जो श्रम और प्रज्ञा का प्रयोग किया है, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं अतएव मैं इस प्राथमिक प्रयत्न की प्रशंसा एवं अनुमोदना करता हूं।"
जिन बिन्दुओं के आधार पर नियुक्ति की गाथा-संख्या के निर्धारण का प्रयत्न किया गया है, उनके बारे में पाठ-संपादन में लगभग सभी स्थलों पर समालोचनात्मक पादटिप्पण दे दिए गए हैं। जिन गाथाओं के संदर्भ में संदेहात्मक स्थिति थी, उनके बारे में भी नीचे पादटिप्पण दे दिए गए हैं। शोधकर्ताओं की सुविधा के लिए यहां पृथक्करण की कुछ प्रमुख कसौटियों को प्रस्तुत किया जा रहा है• प्रक्षिप्त अंश को जानने में टीकाकार मलयगिरि मार्गदर्शक बनकर पथ-प्रशस्त करते रहे हैं। उन्होंने गाथाओं के प्रारम्भ में विषय को जोड़ने का सुंदर प्रयास किया है। टीका के माध्यम से यह ज्ञात हो जाता है कि किस गाथा के किस अंश की कितनी गाथाओं में व्याख्या की गई है। इसके लिए मलयगिरि की टीका
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