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प्रकाशिका टीका द्वि० वक्षस्कार सू. २४ सुषमसुषमाभाषिमनुष्य स्वरूपनिरूपनम २२९ कोमला : पीवराः पुष्टाः अनुपलक्ष्यमाणस्नाय्वादिसन्धिकत्वेनोपचिताः सुसंहताः सुमि लिताः अङ्गुल्यः पादाङ्गुल्यो यासां तास्तथा, 'अब्भुण्णय रइय तलिण तंब सुइणिदणक्खा' अभ्युद्गत रतिदतलिन ताम्र शुचिस्निग्धनखाः अभ्युन्नताः समुन्नताः रतिदाः द्रष्टृ जनानां प्रीतिदाः यद्वा 'रइया' इत्यस्य रजितेतिच्छाया, तत्पक्षे रन्जिताः लाक्षारसेन रागेण रज्जनमुपनीताः, तलिनाः प्रतलाः ताम्राः - ताम्रवर्णाः - ईषद्रक्ता शुचयः पवित्राः मलरहिताः स्निग्धाः चिक्कणाः नखाः यासां तास्तथा, मूळे 'नक्खे' त्यत्र द्वित्वं प्राकृतत्वात् 'रोमर हियवळ संद्वियअजहण्णपसत्थलक्खण अक्कोप्पजंघजुअलाओ' रोमरहित वृत्त लष्ट ( रम्य ) संस्थिताऽजघन्य प्रशस्तलक्षणा कोप्यजङ्घा युगलाः - रोमरहितं निर्लोम वृत्तं वर्तुलं लष्टसंस्थितं रम्यसंस्थानयुक्तम् ऊर्ध्वोर्ध्वक्रमेण स्थूलस्थूलतरम् इति भावः, अजधन्य प्रशस्तलक्षणम् अजघन्यानि उत्कृष्टानि प्रशस्तानि श्लाध्यानि लक्षणानि यत्र तत्तथा भूतम् अकोयम् अद्वेष्यम् अति सुभगत्वात् जङ्घायुगलं यासां तास्तथा, 'सुणिम्मिय सुगूढ सुजाणुमंडल सुबद्धसंघीओ' सुनिर्मित सुगूढ सुजानुमण्डलसुबद्धसन्धयः सुनिर्मिते सुष्ठु नितरां प्रमाणोपेते सुगूढे मांसलत्वादनुपलक्ष्ये ये सुजानुमण्डले सुन्दरजानुमण्डले तयोः सुबद्धौ दृढस्नायुभिः सम्यग्बद्धौ सन्धी सन्धाने यासां तास्तथा, ' कयलोखंभाइरेक संठिय
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होती हैं और पीवर पुष्ट होती है, अर्थात् स्नायु आदिकों की सन्धियां इनमें दिखलाई नहीं देती हैं ऐसी होती है तथा सुसंहत होती हैं आपस में मिली रहती हैं इन अंगुलियों के नख समुन्नत होते हैं ऊपर कीओर बीच में उठे हुए रहते है रतिद होते हैं। देखने वालों को आनन्द प्रद होते है अथवा "रइया" रञ्जित होते हैं - लाक्षारस के राग से रंगे हुए रहते हैं, तलिन पतले होते हैं ताम्र ईषद् रक्तवर्ण वाले होते हैं, शुचि मल रहित होते है एवं स्निग्ध चिकने होते हैं । " नक्खे" में द्वित्व प्राकृत होने से हुआ है इनका जन्धायुगल रोमरहित होता है. वृत्त-वर्तुल-गोल होता है लष्ट संस्थित रम्य संस्थान से युक्त होता है उर्ध्व उर्ध्व क्रम से स्थूल स्थूल तर होता है-और अजघन्यप्रशस्त लक्षणों वाला होता है-उत्कृष्ट श्लाघ्य लक्षणों से युक्त होता है, अकोटच अतिसुभग होने से अद्वेष्य होता है " बुणिम्मिय सुगूढ़ सुजाणु मण्डल सुबद्ध संधीओ, कयलो भाइरेक सं
વર-પુષ્ટ હાય છે. અર્થાત્ સ્નાયુ વગેરેને સ ંધિભાગ એમાં દેખાતા નથી, તેમજ સુસંર્હુત હોય છે. પરસ્પર અડીને રહે છે. એ આંગળીઓના નખા સમુન્નત હેાય છે. ઉપરની તરફ મધ્યમાં ઉउन्नत थयेला रहे छे. रतिह होय छे-लेनारायाने मानहग्रह होय छे. अथवा "रया" ति हाय छे-साक्षा रसना रागथी रंगेला होय छे. 'तलिन' पाता होय छे. ताम्र-विहू स्ववाजा होय छे. शुचि भव विहीन होय छे. तेभन स्निग्ध सुभिश्वय होय छे. "नक्खे' भां દ્વિત્વ પ્રાકૃત હૈાવાથી થયેલ છે. એમનું જ ધાયુગલ રામરહિત હૈાય છે. વૃત્ત-તુલ-ગાલ ડાય છે લષ્ટસ સ્થિત-મ્યસંસ્થાનથી યુક્ત હૈાય છે. ઉ ઉર્ધ્વ ક્રમથી સ્થૂલ સ્થૂલતર હોય છે. અને અજઘન્ય પ્રશસ્ત લક્ષણવાળુ' હોય છે. ઉત્કૃષ્ટ સ્લાય્ય લક્ષણોથી યુક્ત હાય છે. અકાપ્ય
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