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प्रकाशिका टीका तृ० वक्षस्कारः सू० १ भरतवर्षनामकारणनिरूपणम् च मध्यभागे नगरीत्यर्द्ध करणे ११४ चतुर्द्दशोत्तरयोजनशतम् जातम् अवशिष्टस्यैकस्य योजनस्य एकोनविंशतिभागेषु कलात्रयक्षेत्रे सति जाताः २२ तदर्द्धम् ११ एकादश कला इति, तामेव विशेषणै विशिनष्टि- 'पाईण पडीणायया' इत्यादि । 'पाईण पडीणायया' पूर्वापरयो दिशोरायता 'उदीणदाहिणवित्थिन्ना' उत्तरदा क्षिणयो विस्तीर्णा 'दुवालस जोयणायामा' द्वादशयोजनायामा 'णवजोयण वित्थि ण्णा' नत्र योजनविस्तीर्णा 'धणवइमतितिणिम्माया' धनपतिमत्या उत्तरदिक् पालबुद्धया निमिता, निपुण शिल्पिविरचितम्या तिसुन्दरत्वात् 'चामीयरपागारा' चामीकरप्राकारा स्वर्ण नयप्राकारयुक्का 'णाणामणिपंचबण्णा कविसीसगपरिमंडियाभिरामा नानामणिपञ्चवर्णकपिशीर्षकपरिमण्डिता अतएवाभिरामा मनोहरा 'अलकापुरी संकासा' अलकापुरी संकाशा - धनदपुरीसन्निभा 'पमुहयपक्कीलिया' प्रमुदितप्रकीडिता, प्रमुदितजनयोगात् नगयपि 'तात्स्य्यात् तद्वयपदेश' इति न्यायात् प्रमुदिता तथा प्रक्रीडिता और उत्तर से दक्षिण तक चौड़ी है. (दुवालसजोयणायामा) इस तरह इसकी लम्बाई १२-योजन की है (णवजोयण विस्थिणा ) और नौ योजन की इसकी चौड़ाई है । ( घगवइमति णिम्मया ) कुवेर ने उत्तर दिशा के अधिपति ने इसे रचा है ( चामीयर पागारा) स्वर्णमय - प्राकार से यह युक है. ( णाणामणि पंचवण्ण कविसोसगपरिमडियाभिरामा ) पांचवर्णवाले अनेक मणियों से इसके गुरे बने हुए हैं उनसे यह परिमंडित हैं अतः देखने में यह बड़ी सुन्दर लगती है. (अलका पुरी संकासा ) इसलिये यह ऐसी प्रतीत होती है कि मानों यह धनद - कुवेर - को ही नगरी है. ( मुइय पक्कीलिया ) यहां पर रहने वाले सदा प्रसन्नचित रहते हैं और अनेक प्रकार की क्रीडाओं के रसमें सराबोर -रहते हैं - इस कारण यह नगरो भी उनके सम्बन्ध से प्रमुदित और प्रक्रीडित बनी रहती है. ( पच्चक्खं देवलोगभूया ) देखने वालों के लिये यह नगरी साक्षात् देवलोक के समान लगती है. (रिद्धत्थिमियसमिद्धा ) यह नगरी विभव, भवन आदि के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुए हैं इसमें रहने वालों को स्वचक और परचक्र का बिलकूल भय नहीं रहता है तथा धन छे, (उदीण दाहिणबित्थिन्ना) भने उत्तरथी दक्षिण सुधी पडोजो छे. (दुवालसजोयणायामा) या प्रमाणे येनी साई १२ येन भेटली छे. (णबजोयणवित्थिण्णा) अने नव योजन भेटसी सेनी पडोजाई छे. (घणवइमति णिम्मया) उत्तर द्विशाना अधिपति धेरै खेनी २यना ४५। छे. (चामीयरपागारा) अभय आरथी से युक्त छे. ( णाणामणि पंचवण्ण कविसीसग परिमंडियाभिरामा) पांच वाजा भने मषिोथी सेना भंगरायो भनेसा छे. तेमनाथी थे परिमंडित छे. येथी लेवामां मे खूप सुंदर सागे छे. (अलकापुरी संकासा) मेथी थे सेवी प्रतीत थाय छे है ये से धन-डुमेर-नी नगरी छे, (पमुह पक्कोलिया) अडी रहेनारा सर्व प्रसन्नत्ति रहेछ भने भने अहारनी ક્રીડાએના રસમા મગ્ન રહે છે. એથી આ નગરી પણ તેમના સંબંધથી પ્રમુદ્રિત અને प्रीडित रहे छे, (पच्चक्खं देवलोगभूया) नेनाराम भाटे से नगरी साक्षात देवखेो नेवी लागे छे, (रिद्धस्थिमिय सनिद्धा) से नगरी विल, भवन यहि वडे समृद्धि सम्पन्न थाह
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