Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 934
________________ ९२० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे शस्तं निसृजन्ति-शरीराद्वहि निष्काशयन्ति निमृज्य च तथाविधान पुदगलान् आददते इति एतदेव दर्शयति 'तं जहा रयणाणं' इत्यादि 'तं जहा रयणाणं जाक रिट्ठाणं अहा बायरे पुग्गले परिसाडेंति' तद्यथा रत्नानां कर्केतनादोनां यावद् रिष्टानां रत्नविशेषाणां सम्बन्धिनो यथाबादरान् असारान् पुग्दलान् परिशातयन्ति त्यजन्ति अत्र यावत्पदात् 'वइराणं वेरुलियाणं लोहि अक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलयाणं सोगंधिआणं जोईरसाण अंजणाणं अंजणपुलयाण जायसवाणं अंकाणं फलिहाणं'इति सङ्ग्रहः वज्राणां हीरकाणां वैाणां लोहिताक्षाणां मसारगल्लानां हंसगर्भाणां पुलकानां सौगन्धिकानां ज्योतिरसानाम् अजनानाम् अञ्जनपुलकानाम् जातरूपाणाम् सुवर्णरूपाणाम् अङ्कानाम् स्फटिकानाम् एतेषां तत्तद् रत्नविशेषाणां सङ्ग्रहः परिसाडित्ता'परिशात्य असारान् पुग्दलान् परित्यज्य 'अहासुहुमे पुग्गले परिआदिअंति' यथा सूक्ष्मान् सारान् पुद्गलान् पर्याददते गृह्णन्ति परिआदिइत्ता'पर्यादाय-सूक्ष्मान् पुग्दलान् गृहीत्वा दुच्चपि वेउब्धियसमुग्धाएणं जाव समोहणंति' 'चिकीर्षिताभिषेक मण्डपनिर्माणार्थम् द्वितीयमपि वारं वैक्रियसमुद्घातेन यावत् समवघ्नन्ति आत्मप्रदेशान् दूरतो विक्षिपन्ति 'समोहणित्ता' समवहत्य विक्षिप्य 'बहुसमरमणिज्ज भूमिभागं विउव्वंति' बहुसमरमणीयं भूमिभाग विकुर्वन्ति 'से जहानामए आलिंगपुक्ख. ज्जाइं जोयणाई दंडं णिसिरंति,) उन्हें बाहर निकाल कर संख्यातयोजनों तक उन्हें दण्डके आकार में परिणमाया (तं जहा-रयणाणं जावरिट्ठाणं अहाबायरे पुग्गले परिसाडेंति) और इनके द्वारा उन्होंने रत्नों के यावत् रिष्टो के रत्न विशेषों के सम्बन्धो जो असार बादर पुद्ग्ल थे उन्हें छोड़ दिया-यहां यावत्पद से "वइराणं, वेरुलियाणं, लोहि अक्खाणं, मसारगल्लाणं, हंसगम्भाणं, पुलयाणं, सोगंधियाणं, जोईरसाणं, अंजणाणं, अंजणपुलयाणं, जायरूवाणं, अंकाणं, फलिहाणं" इस पाठका संग्रह हुआ है.(पडिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदिअंति) उन्हें छोड़कर उन्होंने यथासूक्ष्मसार पुद्गले को ग्रहण कर लिया. (परिसाडित्ता दुच्चंपि वेउब्वियसमुग्घा एणं जाव समोहर्णति) सारपुद्गलों को ग्रहण करके उन्होंने चिकोर्षित मंडप के निर्माण के निमित्त द्वितीय वार भी वैक्रियसमुद्धात किया. (समोहणित्ता बहुसमरमणिज्ज भूमिभाग विउव्वंति,) द्वितीयवार प्रशोने पर दया (समोइणित्ता खिज्जाई जोयणाई दंड णिसिरंति) प्रशाने महार दीन भने सध्यातरीन सुधारमा परित ४ा (तं जहा रयणाणं जाव रिट्टाणं अहा बायरे पुग्गले परिसाउंति) मन तमना पडे तभणे २त्नी यावत् (२०टो-२त्नविशेषाथी सम्म २ असार मा६२ युगात तेमन छ।उया माडी यावत् ५४थी 'वहराणं, वेरुलि याणं, लोहिअक्खाणं, मसारगल्लाणं हंसगम्भाणं जोइरसाण अंजणाण, अंजणपुलयाणं, जायरूवाणं, अंकाणं, फलिहाणं" मे पान। सड थयो छे. (पडिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआअंति) तेमन छहीन भए यथा सूक्ष्मसार हगवान अ५ री बाधा (परिआदित्ता दुच्चपि वेउब्वियसमुग्धाए ण जाव समोहण ति) सार हगवान अ५ रीन तेभर मिश्रीत मननिर्माण मोट भी त५९ यि समुद्धात श्या. (समोहणित्ता बहुलमरमणिज्ज भूमिभाग विउव्वंति) भील १मत समुद्धात ४रीन तमले सन् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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