Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 939
________________ प्रकाशिका टीका तृ. ३ वक्षस्कार: सू० ३० भरतराज्ञः राज्याभिषेकविषयक निरूपणम ९२५ रूपं कार्य सम्पादितं कृत्वा उक्ताम् आज्ञप्तिकां राज्ञे समर्पयन्तीत्यर्थः 'तए णं से भरहे राया मज्जधर अणुपविसइ जाव अंनणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवइ दुरूटे'- ततः खल स भरतो राजा मज्जनगृहं स्नानगृहम् अनुप्रविशति यावत् अत्र यावत्पदात् अनुप्रविश्य स्नानविधिः ततो मज्जनगृहात् निर्गत्य इति ग्राह्यम् ' अन्जन गिरिकूटमन्निभम् अजनपर्वतशृङ्गसदृशम् सादृश्यञ्च उच्चत्वेन कृष्णत्वेन च बोध्यम् गजपति प्रधानपट्टहस्तिनं नरपतिः दूरूढः आरूढः 'तएणं तस्स भरदस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूटस्स समाणस्स इमे अट्टमंगलगा जो चेव गमो विणीय पविसमाणस्स सोचेष खिममाणस्स वि जाव अपडिबुज्झमाणे विणीयं रायहाणीं मज्झ मज्झेणं णिग्गच्छन्' ततः खलु तदनन्तरं किल तस्य भरतस्य गज्ञः आभिषेक्यम् पट्टहस्तिरत्नं दुरूढस्य आरू ढस्य सतः इमानि अष्टावष्टौ मङ्गलकानि पुरतः अग्रे सम्प्रस्थितानीति शेषः, य एव गमो विनीतां तन्नाम्नीं राजधानीं प्रविशतः स एव गमः निष्क्रामतोऽपि निर्गच्छ" सज्जित कर देने की स्वबरभरत नरेश के पास भेज दी ( तरणं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ) स्वत्रर पाते ही वहभरत नरेश स्नान गृहमें गये (जाव अंजणगिरिकूड संणिभं गवई णरवइ दुखढे) यावत्-वहां जाकर उसने स्नान किया फिर वह मज्जनगृह से बाहर आबा बाहर आकर वह नरपति भरत महाराजा अंजनगिरि के सदृशगजपति पर आरूढ होगये (तर णं तस्स भरहरु रण्णो अभिसेक्कं हत्थिरयणं दूरुदस्स समाणस्स इमे मट्टमंगलगा जो चेन गमो विणीयं पविसमाणस्स सोचैव णिक्स्वममाणस्स वि जाव अपडिबुज्झमाणे विणीयं रायहाणियं म मज्झेणं णिग्गच्छइ) जब भरत महाराजा आभिषेक्यहस्तिरत्न पर आरूढ हो रहे थे उस समय उनके आगे सबसे पहले आठ आठ की संख्या में आठ महा मंगल द्रव्यप्रस्थित हुए इस तरह ' जैसा पाठ विनीता राजधानी से भरतके निकलने के प्रकरण में और फिर विनीता राजधानी में विजय करके वापिस पाने के प्रकरण में प्रतिपादित किया जाचुका है वही सब पाठ यहां "बजते हुए बाजों की मञ्जुध्वनि से जिनका चित्त अन्यत्र नहीं लगा है उन्हीं के शब्दों के भने तिने पछी रान्त पासे मे अगेनी सूचना मोठसावी हीधी. (तपणं से भरहे राया मज्जणघर अणुपर्विस) सूयना भगतांन ते भरत नरेश स्नान घर तरह गया. (जाव अंजणगिरिकूडसण्णिभं गइवह णरवई दुरूढे) यावत त्यां ने स्वान यु में પછી તે મજ્જન ગૃહમાં થી બહાર આવ્યા. બહાર આવીને તે નરપતિ અંજનગિરિ સદૃશ गभ्यति उपर भा३८ थ गया. (तपणं तस्स भरहस्त रण्णो आभिसेवकं हस्थिरयण दुरूढस्स- समाणस्स इमे अट्ठट्ठ मंगलगा जो वेव गमो विणीयं पविसमाणस्स सो वेव णिकममाणस्स वि जाव अपडिबुज्झमाणे विणीयं रायहाणीयं मज्झ मज्झेण णिग्गच्छ જ્યારે શ્રી ભરતરાજા આભિષેકય હસ્તિરત્ન ઉપર આરૂઢ થઈ રહ્યા હતા, તે સમએ તેમની આગળ સર્વ પ્રથમ આઠે આઠની સખ્યામાં આઠ માઁગલ દ્રવ્યેા પ્રસ્થિત થયા આરીતે જેવા પાઠ વિનીતા રાજધાની થી ભરત મહારાજાનીકળ્યા તે પ્રકરણમાં આવેલ છે, તેમજ જેવા પાઢ વિનીતા રાજધાની માં વિજય સપાહિતકરીને પછી પુનઃ પ્રવિષ્ટ થયા તે પ્રકરણમાં આવેલ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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