Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 854
________________ ८४० जम्बूद्धीपप्रज्ञप्तिसूत्रे वारबले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीई णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ सस्कन्धावारबलः स्कन्धावारसैन्यसहितः सेनापतिः सुषेणः सेनापतिः द्वितीयमपि गङ्गायाः महानद्याः विमलजलतुङ्गवीचिम् निर्मलोदकोस्थितकल्लोलम् अतिक्रम्य नौभूतेन चर्मरत्नेन उत्तरति पारं गच्छति 'उत्तरित्ता' उत्तीर्य पारं गत्वा 'जेणेव भरहस्स रणो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छई' यत्रैव भरतस्य राज्ञो विजयस्कन्धावारनिवेशः यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला तत्रैव उपागच्छति ‘उवागच्छित्ता' उपागत्य 'आभिसेक्काओ हत्थिरयणाभो पच्चोरुहइ' आभिषेक्यात् अभिषेकयोग्यात प्रधाना हस्तिरत्नात् प्रत्यवरोहति अधस्तात् अवतरति 'पच्चोरुहिता' प्रत्यवरुह्य 'अग्गाइं वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छई' अग्र्याणि वराणि श्रेष्ठानि रत्नानि गृहीत्वा यत्रैव भरतो राजा तत्रैव उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'करयलपरिग्गहियं जाव अंजलिं कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ' करतलपरिगृहीतं यावत्पदात् दशनखं शिरसावर्त मस्तके अजलिं कृत्वा भरतं राजानं जयेन विजयेन जयगच्छित्ता दोच्चंपि सक्खंधावारबले गंगा महाणई विमल जलतुंगवीई णावा भूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ) वहां जाकर उसने अपने स्कन्धावाररूप बलसहित होकर जिसमें विमल जल की बड़ी २ लहरे उठ रही है. ऐसी उस गंगामहानदी को नौका भून हुए चर्मरत्न के द्वारा पारकिया (उत्तरित्ता नेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावार णिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छद) पार करके फिर वह जहां पर भरत महाराजा का विजयस्कन्धावार का पडाव था. और जहां पर बाह्य उपस्थानशाला थो वहां पर आया (उवागच्छित्ता अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ) वहां आकर वह अभिषेक्य-आभिषेक योग्य-प्रधान-हस्तिरत्न से नीचे. उतरा (पच्चोरुहित्ता अग्गाई वराई रयणाणि गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ) नीचे उतर कर वह श्रेष्ठ रत्नों को लेकर जहां भरत राजा थे वहां पर आया. (उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव अंजलिंकट्टु भन्हं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ) वहां आकर के उसने दोनों हाथों को जोड़कर और सेनापति यi ॥ महानही ली त्यां गये. (उवागच्छित्ता दोच्चपि सक्खंधावारबले गंगा महाणई विमलजलतुंगवोइ णावाभूएणं चम्मरयणेण उत्तरइ) त्या न तेणे याताना કંધાવાર રૂપ બલસહિત સુ સજજ થઈને–જેમાં વિમલ જળની વિશાળ તરંગો લહેરાઈ २ही छ मेवी ते 10 महानहीने नीभूत थये। ते यमरत्न डे पार ४२री. ( उत्तरित्ता जेणेव भरहस्स रणो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवाTest) પાર કરીને પછી તે જ્યાં ભરત રાજાનો વિજય અંધાવા૨–પડાવ-હતા અને જ્યાં माघ ५यान शाणा की त्यां मय.. (उबागच्छित्ता अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चो દ) ત્યાં આવીને તે આભિય-અભિષેક યોગ્ય-પ્રધાન હસ્તિરત્ન ઉપરથી નીચે ઉતર્યા. (पच्चोरुहिता अग्गाई वराइं रयणाणि गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ) नीय तरी ते श्रेष्ठ २त्नाने नयां भरत महारा ता त्या माव्या. (उवागच्छित्ता कर. यलपरिग्गदियं जाब अंजलि कटूटु भरहं रायं जपणं विजएणं वद्धावेइ) त्या गावी ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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