Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 908
________________ ~ ~ ~ - ~ - ~ ८९४ जम्वृद्धोपप्रतिसरे कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति आहयति 'सदायित्ता' शब्दयित्वा आहूय तहेव जाव' तयैव पूर्ववदेव यावत् अत्र यावत्पदात् आभिषेक्यगजपतिसज्जीकरणमज्जनगृहस्नानकरणादि रूपः सर्वो आलापको ग्राह्यः तदनन्तरम् 'अंजणगिरिकूडसणिभं गयवई परवई दुरूहे' अजनगिरिकूटसन्निभम्-अजनपर्वतशृङ्गसदृश्यं सादृश्यं च उच्चत्वेन कृष्णवर्णत्वेन च बोध्यम् गजपतिम्, पट्टहस्तिनं नरपतिः राजा भरतः दुरूढः आरूढः 'तं चेव सव्वं जहा हेटा' तदेव सर्व तथा वक्तव्यम् यथा 'हेहा' अधस्तनपूर्वसूत्रो यादृशसामग्रीविशिष्टस्य विनीतातो गमनसमये वर्णन कृतं तथाऽत्रापि प्रवेशे वक्तव्यम् इत्यर्थः, अत्र विशेषमाह 'णवरं णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओ ण पविसति सेसो सोचेव गमो जाव णिग्योसणाइएणं विणीयाए रायहाणीए मज्झं मज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरवर्डिसगपडिदुवारे तेणेव पहारेत्थ गमणाए' नवरम् अयं विशेषः नैसदिशसान्ताः नव महानिधयो न प्रविशन्ति तेषां मध्ये एकैकस्य निधेविनीताप्रमाणत्वात् भो देवानुप्रियो ! तुम आभिषेक्य हस्तिरत्न को सनित करो इत्यादि पूर्वकथित सब कथन जैसा कि पहिले कहा जा चुका है वह सभी कथन यहां पर मज्जनगृह प्रवेश, स्नान करने तक का ग्रहण कर लेना चाहिये उसके बाद वह (अ ननगिरिकूडसविणभं गयवइ णरवई दुख्ढे) नरपति श्री भरत महाराजा उस अजनगिरि के जैसे गनपति पर आरूढ हो गया (तै चेव सव्वं जहा हेढा) यहां अब सब वर्णन जैसा विनीता राजधानी से विनय करने को निकलने समय पीछे किया जा चुका है. इसी तरह का वह सब कथन यहां प्रवेश करते समय भी कह लेना चाहिये. (णव णवमहाणिहिओ चत्तारि सेणामओ ण पविसंति सेसो सो चेव गमो नाव णिग्धोसणाइएणं विणीयाए रायहाणीए मझ मझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरवडिंसगपडिदुवारे तेणेव पहारेथ गमणाए) परन्तु प्रवेश करते समय इतनी विशेषता हुई कि विनीता राजधानी में महानिधियों ने प्रवेश नहीं कियाक्यों कि एक एक महानिधि का प्रमाण विनीता राजधानी के बराबर था. अतः वहां उन्हें स्थान पोतानाही मि ५३वान मेव्या (सहावित्ता एवं पयासी)मावावीनतमन प्रभाधु હે દેવાનુપ્રિ તમે ઓભિષેકય હસ્તિરત્ન ને સજિજત કરો વગેરે સર્વકથન પહેલાં મુજબજ અત્રે પણ સમજવું. અહીં મજન ગૃહમાં પ્રવેશ તથા નાન કરવા સુધીના પાક સંગૃહીત થયેલ છે, सयु सभात्यारा (अजनगिरीकूडसण्णिम गयवहंणरवई दूरूढे)नरति सरत ते मन निसदृश पति ७५२ मा३० 45 गया. (तं चेव सवं जहा हेट्ठा)मडी मधुबन જેવું વિનીતા રાજધાની થી નિકળતી વખતે-વિજય મેળવવા માટે પહેલા સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે. તેવું જ તે બધું કથન અહીં પ્રવેશ કરતી વખતે પણ પૂર્વકથન પ્રમાણે યથાર્થ સમજી લેવું જોઈએ (णवरं णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओ ण पविसंति सेसो सो क्षेत्र गमो जावणिग्घोसणाइपन विणीयाए रायहाणीए मज्झ मज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरवडिं सगपडिदुवारे तेव पहारेत्थ गमणाप)५९ प्रवेश २ती मते माटात विशेष विनीता पानीमा महा નિધિઓએ પ્રવેશ કર્યો નહીં. કેમકે એક–એક મહાનિધિનું પ્રમાણ વિનીતા રાજધાનીની બરાબર Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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