Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 923
________________ प्रकाशिका टीका तृ० ३ वक्षस्कारःसू० ३० भरतराज्ञः राज्याभिषेक विषयक निरूपणम् तं सेयं खलु मे अप्पाणं महया रायाभिसेएणं अभिसेएणं अभिसंचावित्तएतिकट्टु एवं संपेहेति संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभाए जाव जलते जेणेव मज्जणघरे जाव पडिणिक्ख इ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव सीहामणे तेणेव उवागच्छर्इ उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमु सियति णिसीइत्ता सोलसदेवस हस्से बत्तीस रायवरसह - स्से सेणावइरयणे जाव पुरोहियरयणे तिणि सट्ठे सूअसए अट्ठारस सेणिपसेणीओ अण्णेअ बहवे राईसर तलवर जाव सत्थवाहप्पभियओ सहावे सदावित्ता एवं व्यासी अभिजिएणं देवाणुप्पिया! मए णिअगबल वीरिअ जाव केवलकप्पे भरहे वासे तं तु मे णं देवाणुप्पिया ! ममं महया महया रायाभिसेयं वियरह, तए णं से सोलसदेव सहस्सा जाव - पभियओ भरणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ करयल मत्थए अंजलि कट्टुभहस्सरणो एयम सम्मं विणएणं पडिसुर्णेति तए णं से भरहे राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छर्इ उवागच्छित्ता जाव अट्ठमभत्तिए पडिजारमाणे विहरहू । तए णं से भरहे राया अट्टमभत्तंसि परिणममाणसि आभिओगिए देवे सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एगं महं अभियमण्डवं विवेह विव्वित्ता मम एयमार्णात्तयं पच्चपिगढ । तणं ते भिओगा देवा भरहेण रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा जाव एवं सामित्तिआणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति पडिणित्ता विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमति अवक्कमित्तावेउच्चियसमुग्धारणं समोहणंति समोहणित्ता संखिज्जाई जोयणाई दंड णिसिरंति, तं जहां रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहावा यरे पुग्गले परिसा डेंति परिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदिअंति, परिआदित्ता दुच्चपि वेउव्वयसमुग्धारण जान समोहति समोहणित्ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभाग विउव्वंति से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा तस्सणं बहुसरेम ० " 'तणं तस्स भरइस्सरण्णा अण्णया कयाइं । इत्यादि टीकार्य - तरणं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्प इमेयारूवे नाव . समुपज्जित्था ) एक दिन की बात है कि जब श्री भरत राजा अपने राज्य शासन के. Jain Education International For Private & Personal Use Only ९०९ www.jainelibrary.org

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