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प्रकाशिका टीका ६.३ वक्षस्कारः सू० २९ स्वराजधान्यां श्रीभरतकार्यदर्शनम् ९०५ सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारित्ता सम्माणिचा' सत्कार्य सम्मान्य ‘एवं गाहावहरयण बद्धइरयणं पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ' एवम् अमुना प्रकारेण गाथापतिरत्नं बर्द्धकिरत्न पुरोहितरत्नं च सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य 'तिणि सट्टे सूअसर सक्कारेइसम्माणेई' त्रीणि षष्टानि-षष्टयधिकानि सूपशतानि रसवतीकारशतानि सत्कारयति सम्मानर्यात 'सकारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य 'अट्ठारस से णिप्पसेणीओ सक्कारेइ सम्माणेइ' अष्टादश श्रेणिः प्रश्रेणी: सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य अण्णे विं बहवे राईसर जाव सत्यवाहप्पभि ईओ सक्कारेइ सम्माणेइ' अन्यानपि बहून् राजेश्वर यावत्सार्थवाहप्रभृतीन सत्कारयति सम्मानयति अत्र यावत्पदात् माडम्बिक कोटुम्बिक मन्त्रि महामन्त्रि गणकदोवारिकाऽमासत्कार और सन्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता एवं गाहावइरयणं वद्धइग्यणं पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ) सेनापतिरन के सत्कार और सम्मान हो जाने के बाद फिर उन्होंने गाथापति रत्न का बर्द्धकिरत्न का एवं पुरोहितरत्न का सत्कार और सन्मान किया(सक्का रत्ता संमाणित्ता तिण्णिसढे सूयसए सक्कारेइ संमाणेइ) इन सबके सत्कार और सम्मान हो चुकने पर उम भरत नरेशने तीनसौ ६० रसवती कारकों का रसोईयों का-सत्कार एवं सन्मान किया (सकारिता संमाणित्ता अट्ठारससेणिप्पसेणीओ सक्कारेइ, सम्माणेइ) इन का सत्कार सन्मान हो जाने के बाद फिर भरत राजा ने अठारह श्रेणिप्रश्रेणि जनों का सत्कार और सम्मान किया (सकारित्ता संमाणित्ता अण्णे वि बहवे राईसर नाव सत्यवाहपभिईओ सक्कारेइ, सम्माणेइ) इनका सत्कार सन्मान हो जाने पर फिर भरत राजा ने और भी अनेक राजेश्वर आदि से लेकर सार्थवाहो तक के जनसमूह का सत्कार और सन्मान किया यहां यावत्पदसे "माडम्बिक, कौटुम्बिक, यु (सककारिता सम्माणित्ता सेणावहरयणं सक्कारे संमाणेइ) सत्४२ तेभर सन्मान श ने पछी पोताना सेनापति ना तेथे सत्तार यो मन तेनु सन्मान यु. (सकारिता सम्माणित्ता एवं गाहावइ रयणं बद्धहरयणं पुरोहियरयण सक्कारेह सम्माणेइ) सेनापति રત્નને સત્કાર અને સન્માન કરીને પછી તેણે ગાથાપતિ રતનને વર્ધકિરત્ન ને અને पडित न । सत्तार भने सन्मान यु (सक्कारित्ता संमाणित्ता तिण्णि सटे सूक्सए सक्कारेह संमाणेह) मे सपना स४२ मन सन्माननी विधि समास व त्या२ माह ते ભરત નરેશે ત્રણસે સાઈઠ રસવતીકારક-સેઈથાઓનો સત્કાર કર્યો અને તેમનું सन्मान' (सक्कारिता सम्माणित्ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सक्कारेई, सम्माणेड) સવની સત્કાર અને સમાન વિધિ સમાપ્ત થઈ ત્યાર બાદ ભરત મહારાજા એ અદ્ર ૨ શ્રેણિ प्रश्रेलिताना सार यो अन तमनुसन्मान यु (पक्कारित्ता संमाणिता अण्णे वि बहबे राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईओ सक्कारेइ सम्माणेइ) मे सपनो सरा२सन સમ્માન વિધિ પૂરી કર્યા પછી ચક્રવતી શ્રી ભરત રાજાએ બીજા પણ અનેક રાજેશ્વર આદિથી માંડી ને સાર્થવાહ સુધીના જન સમૂહને સત્કાર કર્યો અને તેમનું સન્માન કર્યું मही यावत ५४ माईषिक, कौटुबिक मंत्री, महामंत्री, गणक, दौवारिक, अमात्य ११४
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