Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 884
________________ ८७० जम्बूद्वोपप्रप्तिसूत्रे पुवीए संपट्टिा' ततः खलु भरतस्य राज्ञ आभिषेक्यम् अभिषेकयोग्यं हस्तिरत्नं दुरुढस्य आरूढस्य सतः इमानि स्वस्तिकादीनि अष्टाष्टमङ्गलकानि पुरतः अग्रे यथानुपूां यथाक्रम संप्रस्थितानि चलितानि कानि च तानि इत्याह- ' तं जहा' इत्यादि 'तं जहा-सोत्थिय सिरिवच्छ जाव दप्पणे' तद्यथा-स्वस्तिक,१ श्रीवत्स २, यावत् दर्पणाः३। अत्र यावत्पदात् नन्दिकावर्त४, वर्धमानक५, भद्रासन६, मत्स्य, कलशाः८, इति ग्राह्यम् 'तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार दिव्या य छत्तपडागा जाव संपट्ठिया' तदन्तरं च खलु पूर्णकलशभृङ्गाराः तत्र पूर्णजलभृतः कलशः भृङ्गाराश्चेत्यर्थः तत्र कलशाः लोकप्रसिद्धाः भृङ्गाराः पात्र विशेषाः ज्झारी' इति भाषाप्रसिद्धाः समाहारद्वंद्वादेकवद्भावः नपुंसकत्वञ्च इयं कलशादि जलपूर्णत्वेन चित्रलिखितकलशादिना भिन्ना तेन चित्रलिखित कलशादिभ्यो न पौनरुक्त्यमित्यर्थः। दिव्या प्रधाना चः समुच्चये स च व्यवहितसम्बन्धः छत्रपताका च यावत्पदात् 'सचामरा दंसणरइय आलोयदरिसणिज्जा वाउद्ध्यविजयवेजयंती अन्भुस्सिया गगणतलमणुलिहंती पुरभो अहाणुपुबीए' इति ग्राह्यम् तेन तत्र सचामरा - चामरयुक्ता दर्शने प्रस्थातु र्दष्टिपथे रचिता मङ्गल्यत्वात् अतएव आलोकेशकुनानुकूल्यदर्शने दर्शनीया द्रष्टु योग्या वातोद्धृत विजयवैजयन्ती वातेन, वायुना उद्धता कम्पिता विजयसूचिका वैजयन्ती पार्श्वतो लघुपताकाद्वययुक्तः पताका विशेषाः हुए तो उनके आगे आठ आठ की संख्या में आठ मंगल द्रव्य सर्वप्रथम प्रस्थित हुए (तं जहा) वे आठ मंगल द्रव्य नामतः इस प्रकार से हैं-(सोत्थिय, सिरिवच्छ जाव दप्पणे) स्वस्तिक श्रीवत्स, यावत् नन्दिकावर्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, मत्स्य, कलश, एवं दर्पण (तयणंतरं च णं पुण्णकुलसभिंगार दिव्वाय छत्तपडागा जाव संपट्टिया) इनके बाद पूर्ण कलश-निर्मल जल से भरा हुआ कलश भृङ्गार- झारी एवं दिव्य प्रधान छत्रयुक्त पताकाएँ यावत् प्रस्थित हुई । यहाँ यावत्पद से "सचामरा दंसणरइय आलोय दरिसणिज्जा वाउद्धय विजयवेजयंति अभुस्सिया गगणतलमणुलिहंती पुरो अहापुवीए" इस पाठ का संग्रह हुआ है (तयणंतरं च वेरुलिय भिसंत विमल दंड जाव अहाणुपुवीए संपट्टियं) इनके बाद वैडूर्यमणि निर्मित विमल दण्ड वाला छत्र प्रस्थित हुआ यहां यावत्पद से-"पलंब कोरंट मल्ल दामोवसोहियं चंदमंडलनिभं ससित्तूयं विमलं आयवत्तं पवरं सिंहासणं च मणिरयणपायपीढं स पाउआ जोगसमाउत्तं बहुकिंकर कम्मकर पुरिसपायत्त परिक्खिअट्ठमंगलगा पुरमओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया) ॥२ स्तिरत्न ५२ समा३० थये। भरत महा રાજા ચાલવા પ્રસ્તુત થયા તે તેમની આગળ આઠ-આઠની સંખ્યામાં આઠ મંગળ દ્રવ્ય सब प्रथम प्रस्थित थयां. (तं जहा) मा भगत-द्रव्ये ना नामे। प्रभारी छ-(सोत्थिय सिरिवच्छ जाव दप्पणे ) स्वस्ति, श्रीवत्सयावत नवित्त वद्ध भान४, भद्रासन, मत्स्य ४थ मने ६५.५ (तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार दिव्वा ‘य छत्तपडागा जाव सपट्टिया ) त्यामा पूर्ण ४५श ११ सरित ४१श २ आरी तमा हिय प्रधान छत्रयुत तास। यावत प्रस्थित थ ही यात ५४थी (सबामरा दसणरइय आलोय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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