Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 898
________________ ८८४ जम्वृद्धोपप्रप्तिसूत्रे ये ते तथाभूताः तेषाम् एवं भूतानां गजानां हस्तिनाम् अष्टशतम् अष्टोत्तरशतं पुरतो यथानुपूा क्रमेण सम्प्रस्थितम् । अथ रथाः तयणंतरं च णं सछत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं साडागाणं सतोरणवराणं सरिघोसाणं सखिखिणो जालपरिक्खिताणं हिमवंत कंदरंतरणिवाय संवद्धिय चित्ततिणिस कणगमणिजुत्तदारगाणं कालायससुकयणेमिजत कम्माणं सुसिलिम्वत्तमंडलधुर णं आइण्णवरतुरग संपउत्ताणं कुसलणरच्छेअ सारहिम संपग्गहियाणं बत्तीसतोरणपरिमंडियाणं सकंकडवडेंसगाणं सचावसर पहरणावरण भरिअ जुद्ध सज्जाणं अट्टसयं रहाणं पुरो अहाणुपुबीए सपद्वियं'इति स्थानां विशेषणानि आहतदनन्तरं च खलु रमणीयाति रमणीय सच्छत्राणां छत्रयुक्तानां सध्वजानां महाध्वजसहितानां सघण्टानाम् घण्टिकायुक्तानां सपताकानां लघुध्वजसहितानां सतोरणवगणां श्रेष्टतोरणयुक्तानाम् अत्र तोरणं द्वारस्य अवयवविशेषः यद्वा तोरणम् 'मेहराव' इति भाषाप्रसिद्धं तद्युक्तानां सनन्दिघोषाणां नन्दिधोषाः युगपद् द्वादशप्रकारक वाद्योत्थितध्वनिविशेषाः तेः सहितानां सकिङ्किणीजालपरिक्षिप्तानां परिक्षिप्तक्षुद्रघण्टिकापड्किविशेषयुक्तानां हिमवत् कन्दरान्तरनिर्वातसंवदितचित्रतिनिश कनकमणियुक्तदारुकाणाम्' तत्र हिमवतः क्षुद्रहिमवतःक्षुद्रहिमवद्गिरेः निर्वातानि वातरहितानि यानि कन्दरान्तके चालन क्रिया में पटुतर विषादोजन बैठे हुए थे ऐसे ये हाथी १०८एकसो आठ थे (तयणंतरंचणं सछत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं,सपडागाणं, ततोरण वराणं सणंदिघोसाणं सखिखिणीजालपरिक्खित्ताणं हिम-वंतकंदर तरणिवाय संवद्धिय चित्ततिणिसकणग मणिजुत्तदारुगाणं ) इनके बाद रथ संप्र स्थित हुए ये रथ छत्रों सहित थे, वजा सहित थे घंटाओं सहित थे पताकाओं-लधुध्वजाओसहित थे श्रेष्ठ तोरणों से युक्त ये द्वार के अवयवविशेष का नाम तोरण है जिसे भाषा में मेहराव कहा जाता है। नंदिघोष से समन्वित थे एक साथ जो बारह प्रकार के बाजे बनते हैं और उनसे जो ध्वनिका अंबार निकलता है उसका नाम नन्दिघोष है छोटी २ घटियों का जाल तरतीब बार इनके ऊपर विछा हुमा था इनमें जो फलक-विशेष प्रकार के पटिये लगाये गये थे-वे क्षुद्र हिमवगिरि की निर्वात कन्दरा के बीच में-भीतर संवद्धित हुए विविध ઉપર અશ્વ સંચાલન ક્રિયામાં પટુતર લેકે કરતાં પણ વિશેષ પટુ એવા વિષાદી અને ता. अवा मे हाथी १०८ ता. (तयणंतरचणं सछत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं, सतोरणवराणं, सणंदिघोसाणं सखित्रिणीजालपरिक्खित्ताणं हिमवंतकंदरतरणिब्बायसंवद्धिय चित्तग्गितिणिसकणगमणिजुत्तदारुगाण) त्या२मा २थे। सस्थित थया. मे २थे। छत्री सहित ता. जी सहित हता, घंटासा सडित ता, पतासाલદેવજીએ-સહિત હતા. તારાથીયુક્તહત દ્વારના અવયવ વિશેષનું નામ તારણ છે. જેને हिन्दी भाषामा 'महेराब' हुवामां भावछ. नहिधावथी समन्वितता.अहीसाथेरेसार પ્રકારના વાદ્યો વગાડવામાં આવે અને તેમાથી જે ધ્વનિ નીકળે છે તેનું નામ નંદિઘોષ છે. નાની-નાની ઘંટડીઓનો સમહ કમિશઃ એમની ઉપર આડૂત હતા. એમની અંદર જે કલક વિશેષ પ્રકારના પાટિયા લગાડવામાં આવ્યા હતા–તે ક્ષુદ્ર હિમવર્દ ગિરિની નિર્વાત Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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