Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिस्त्रे ___यदा स भरतो दिगविजयं कृत्वा आगच्छति स्वराजधानी तदा तत्र किं करोति तत्राह-" तएणं से" इत्यादि । मुलम्-तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममासि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता कोडंबिय पुरिसे सहावेई सहावित्ता तहेव जाव अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरूढे तंचेव सव्वं जहा हेट्ठा णवरिं णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओण पविसति सेसो सोचेव गमो जाव णिग्घोसणाइएणं विणीयाए रायहाणीए मज्झं मज्झेण जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरखडिंसगपडिदुवारे तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तएणं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणि मज्झं मज्झेणं अणुपविसमाणस्स अप्पेगइया देवा विणीयं रायहाणिं सम्भंतरबाहिरियं आसिअसम्मज्जिओवलितं करेंति अप्पेगइया मंचाइमंचकलियं करेंति एवं सेसेसु वि पएसु अप्पेगइया णाणाविहरागवसणुस्सिय घय पडागामंडितभूमियं अप्पेगइया लाउल्लोइयमहियं करेंति अप्पेगइया जाव गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पे गइया हिरण्णवासं वासिंति सुवण्णरयणवइरआभरणवासं वासेंति, तएणं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणी मज्झं मज्झेणं अणुपविसमाणस्स सिंघाडग जाव महापहेसु बहवे अत्थथिआ कामथिआ भोगत्थिा लाभत्थिआ इद्धिसिआ किबिसिआ कारबाहिआ कारोडिआ संखिआ चक्किआ णांगलिआ मुहमंगलिआ वद्धमाणया लंख मंख माइआ ताहिं
ओरालाहिं इट्टाहिं कंताहिं पिआहिं मणुन्नाहिं मणामाहिंधण्णाहिं सिवाहि मंगल्लाहिं सस्सिरीआहिं हिअयगमणिज्जाहिं हिअयपल्हायणिज्जाहिं वग्ग्रहिं अणुवरयं अभिणंदंता य अभिथुणंताय एवं वयासी-जय जय गंदा जय जयभद्दा ! भदंते अजियं जिणाहि जिअं पालयाहि उपद्रव के वहां पर वास बना रहे तथा प्रजाजन सुख शांति से रहें-इसके लिये यह तपस्या उन्होंने धारण की अतः इसमें सार्थकता ही है निरर्थकता नहीं। ॥२८॥ પણ જાતના ઉપદ્રવે ત્યાં પોતાના વાસ રહે તથા પ્રજા સુખ શાંતિ પૂર્વક રહી શકે-એટલા માટે આ તપસ્યા તેમણે ધારણ કરી. એથી આ તપસ્યા સાર્થક જ કહેવાય, નિરર્થક નહીં ૨૮
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