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जेम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सागरप्रस्तावात् क्षीरसमुद्रादिः स इव स्तिमितः स्थिरश्चिन्ताकल्लोलवर्जितो न पुनहीयमानवर्धमानकल्लोललवगसमुद्रइवास्थिरस्वभाव इत्यर्थः 'धणवइव्व भोगसमु-दयसहव्ययाए' धनपतिरिव कुबेर इव भोगस्य. समुदयः-सम्पदुदयस्तेन सह सद्विद्यमानं द्रव्यं यस्य स भोगसमुदय सद्व्यम्तस्य भावस्तत्ता तया, भोगोपयोगि भोगाङ्ग समृद्ध इत्यर्थः (समरे अपराइए) समरे-संग्रामे अपराजितः-पराजयमप्राप्तः (परमविक्रमगुणे) परमविक्रमगुणः उत्कृष्टपराक्रमगुणयुक्तः (अमरवइसमाणसरिसरूवे) अमपतेः शक्रस्य समानं सहशमत्यर्थतुत्यं रूपं यस्य सोऽमरपति समानसदृशरूपः, इन्द्रसमानरूपसम्पत्तिमानित्यर्थः (मणुअवई) मनुजपतिः नगराधिपतिः (भरहचकवट्टी) भरतचक्रवती उत्पद्यते इति पूर्वेण सम्बन्धः, अथोत्पन्नः सन् किं कुरुते इत्याह-(भरह) इत्यादि ( भरहं भुंजइ पणदृसत्तू ) अनन्तरसूत्रे एवं प्रदर्शितस्वरूपो भरतत्तक्रवर्तीभरतं भुकते-शास्तीति, प्रणष्टशत्रुरिति स्पष्टम्, अत इदं भरतक्षेत्र मुच्यते इति निगमनमग्रे वक्ष्यते ॥ सू० २ ॥ समुदयसव्वयाए समरे अपराइए परमविक्कमगुणे अमरवइ समाणसरिसरूवे) निर्भय होते हैं, क्षीरसमुद्र आदि को तरह ये चिन्ता रूप कल्लोलों से वर्जित रहते हैं कल्लोलों से हीयमान वर्धमान लवण समुद्र की तरह ये अस्थिर स्वभाव वाले नहीं होते हैं कुबेर के जैसे ये भोगों के समुदाय में अपने विद्यमान द्रव्यों को खर्च करने वाले होते हैं अर्थात् विद्यमान द्रव्य के अनुसार ये भोगोपभोगों को भोगने वाले होते हैं । समराङ्गण में इन्हें कोई परास्त करने वाला नहीं होता है- ये अपराजित होते हैं। क्योंकि ये जिस पराक्रम गुण से युक होते हैं वह उनका उत्कृष्ट होता है । उनका रूप शक के समान बहुत ही अधिक सुन्दर होता है। ( मणुमवई भरह चक्कवट्टी भरहं भुजइ पण्णद्वसत्तू ) इस प्रकार के इन पूर्वोक्त समस्त विशेषणों से संपन मनुजाधिपति भरत चक्रवर्ती इस भरत क्षेत्र का शासन करते हैं उस समय इनका कोइ भी शत्र प्रतिपक्षी- नहीं रहता है समस्त शत्रुगण नष्ट हो जाता है इस कारण हे गौतम ! इस क्षेत्रका नाम भरत क्षेत्र इस प्रकार से कहने में आया हैं ॥२॥ रेम नत्र मन भनन मान मापना२ डाय छे. (अक्खोमे सागरोव थिमिए धणवईव्व भोगसमुदयसव्वयाए समरे अपराइए परमविक्कमगुणे अमरवइसमाण सरिसरूवे) निर्भय य छे, क्षीर समुद्र कोरेन नेम अस। (यन्त३५ yearala વજિત રહે છે. કલ્લોલથી હીયમાન, વર્ધમાન લવણ સમુદ્રની જેમ એ અસ્થિર સ્વભાવવાળા હોતા નથી. કુબેરની જેમ એ ભેગેના સમુદાયમાં પોતાના વિદ્યમાન દ્રવ્યોને ખચ કરતા હોય છે. એટલે કે વિદ્યમાન દ્રવ્ય મુજબ એઓ ભેગેપગેને ભેગવનાર હોય છે. રણાંગણમાં એ અપરાજિત હોય છે. કેમકે એઓ જે પ્રરાક્રમ ગુણથી યુકત હોય છે. તે તેમના ઉત્કૃષ્ટ હોય છે. તેમનું રૂપ શક્ર જેવું અતીવ સુંદર હો भरहवककवट्टी भरह भुजइ पणदृसत्त) मा प्रमाणे मे पूत समस्त विशेषगाथा સમ્પન મનુજાધિપતિ ભરત ચક્રવતી એ ભરનક્ષેત્રનું શાસન કરે છે. તે સમયે એમને કંઈ પણ શત્રુ પ્રતિપક્ષી રહેતું નથી. સમસ્ત શત્રુઓને વિનાશ થઈ જાય છે. એથી હે ગૌતમ ! આ ક્ષેત્રનું નામ ભરત ક્ષેત્ર કહેવામાં આવ્યું છે. મે ૨
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