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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे जनावधिकसैन्यसमूहस्योपरि स्थापयति 'ठवित्ता मणिरयणं परामुसइ' स्थापयित्वा मणिरत्नं पगमृशति-स्पृशति गृह्णाति 'वेढो जाव त्ति' अत्र मणिरत्नस्य वेष्टको वर्णको यावदिति सम्पूर्णों वक्तव्यः पूर्वोक्तः, स च 'तोतं चउरंगुलप्पमाण' इत्यादिकः 'परामुसित्ता' परामृश्य 'छत्तरयणस्स वत्थिभागं ठवेइ' चर्मरत्नच्छत्ररत्न सम्पुटमिलननिरुद्ध सूर्यचन्द्राद्यालोके सैन्येऽहर्निशमुद्योतार्थ छत्ररत्नस्य वस्तिभागे अत्र वस्ति शब्देन अवयवरूपोऽर्थों गृह्यते तेन छत्रस्य अवयवविशेषे शलाकामध्यभागे मणिरत्नं स्थापयति, नन्वेवं सकलसैन्यानामवरोधे जाते सति कथं तेषां भोजनादि विधिरित्याशङ्कमानं प्रत्याह- गृहपतिरत्नं सर्वमत्र पानादिकं निष्पाद्य सर्वां भोजनव्यवस्थां करोतीति अग्रे ने जब अपने स्कन्धावार के ऊपर छत्ररत्न को तान दिया- तब इसके बाद उसने ( मणिरयणं परामुसइ) मणिरत्न को उठाया (वेढो जाव छत्तरयणस्स वस्थिभागंसि ठवेइ ) इस मणिरत्न का यहां सम्पूर्णवर्णकपाठ " तातं चउरंगुलप्पमाण" यहां तक जैसा पहले कहा गया है वैसा ही कहलेना चाहिए- उस मणिरत्न को उठा करके उसे उसने छत्ररत्न के वस्ति;भाग मेंशलाकाओं के मध्य में रखदिया क्योंकि चर्मरत्न- और छत्ररत्न के परस्पर में मिल जाने से उस समय सूर्य और चन्द्र का प्रकाश निरुद्ध हो गया था इसलिये सैन्य में अहर्निश प्रकाश बना रहे इस अभिप्राय से उसने मणिरत्न को छत्ररत्न की शलाकाओं के मध्य भाग में रखदिया ( तस्सय अणतिवरं चारुरूवं सिलणिहि अत्थमंतमेत्त सालि-जब गोहुम मुग्गमासतिल कुलस्थ मटिगनिम्फावणगकोदव कोथूभरिकंगुवरगरालग अणेगधण्णावरण हारिअग.अल्लग मूलगहबिलाउअत उस तुंबकालिंग कवि? अंव-अंबिलिअ सव्वणि फायए ) अब सूत्र कार चक्रवर्ती के
सैन्य को भोजनादिविधि की व्यवस्था करने वाले गृहपतिरत्न के सम्बन्ध में यहां से यह कथन प्रभ करते हैं- इसमें ऐसा कहा गया हैं कि चक्रवर्ती के पास एक गृहपतिरत्न भी होता है
यार पाताना २४ धावारनी ७५२ छत्ररत्न all el त्यारे तेरी (मणिरयण परामसइ) मशिन २०यु. (वेढो जाव छत्तरयणस्त वस्थिभागसि ठवेइ) मणिरत्न विश मही सप
8 'तोतं चउरंगुलप्पमाणं' मी सुधीरेम ४ामा मा०यु छ, तर સમજવું જોઈએ તે મણિરત્નને ઉઠાવીને તેણે તે મણિરતનના વસ્તિભાગમાં–શલાકાઓના મધ્યમાં મૂકી દીધું. કેમકે ચમેન અને છત્રરતનને પરસ્પર મળવાથી તે સમયે સૂર્ય અને ચન્દ્રને પ્રકાશ રોકાઈ ગયો હતો. એથી સિન્યમાં અહર્નિશ પ્રકાશ કાયમ રહે તે माटत महिनन छत्र२त्ननी सामाना मध्यभागमा भूटी हीथुतु. (तस्स य भणति बरं चारूरूवं सिलणिहि अस्थमंत मेत्तसालि जब गोहूम मुग्ग मास तिलकुलत्थ सद्विग निप्फाववणगकोदव को|भरिकंगुवरगरालग अणेगधण्णावरण हारिअगअल्लग मूलगालिदलाउअत उस तुंब कालिंग कवि अंवअंबिलिअ सव्वणिपफायए) હવે સત્રકાર ચક્રવતીના સૈન્યની ભેજનાદ વિધિની વ્યવસ્થા કરનાર ગૃહપતિ રનના
બધમાં અહીથી કથન પ્રારંભ કરે છે. એ કથનમાં આ પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે કે ચક્રવતીની પાસે એક ગૃહપતિ રત્ન હોય છે અને એ રતનજ ચક્રવતીના વિશાળ સૈન્ય
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