Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 839
________________ प्रकाशिका टीका तृ.३ वक्षस्कारासू०२५ नमोबिनमीनामानौ विद्याधरराशो:विजयवर्णन ८२५ देवाणुप्पिया ! जंबुद्दिवे दीवे भरहे वासे भरहै राया चाउरंतचक्कवट्टी तं जी अमेअं. तीपच्चुप्पणमणागयाणं विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीणं उक्त्थाणीयं करेत्तए' उत्पन्नः खलु भो देवानुप्रियाः ! जम्बूद्वीपे द्वीपे जम्बूद्वीपनामक मध्यजम्बूद्वीपे भरते वर्षे भरतखण्डे श्री भरतो नाम महाराजा चातुरन्तचक्रवर्ती चत्वारोऽन्ताः त्रयः पूर्वापादक्षिणपमुद्राः चतुर्थों हिमालय गिरवर इत्येवं रूपास्ते वश्यतया सन्ति यस्य स चातुरन्तः स चासो चक्रवर्ती च इति चातुरन्तचक्रवर्ती तत् तस्माज्जोतमेतत् एष आचारक्रमः अतीतवर्तमानानागतानां विद्याधरराज्ञां चक्रवर्तीनामुपस्थानिक रत्नादिना प्राभृतं कर्तुम् अर्पयितुम् 'तं गच्छ मो णं देवाणुप्पिया । अम्हे वि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमो तत् तस्मात्कारणात् गच्छामः खलु देवाणुप्रियाः ! वयमपि भरतस्य राज्ञ उपस्थानिकं कुर्मः 'इतिकटु' इति कृत्य इति अन्योऽयं भणित्वा 'विणमो' विनमिः उत्तरश्रेण्यधिपतिः सुभद्रां नाम्ना स्त्रीरत्न नमिश्च दक्षिणश्रेण्यधिपतिः रत्नानि कटकानि त्रुटिकानि च गृह्णाति इत्यग्रेऽन्वयः अथ विनमिः कीदृशः सन् किं कृत्वा सुभद्रा कन्यारत्नं गृह्णाति इत्याह-पंकणं चक्कट्टि दिव्वा मईए चोइयमई' दिव्यया मत्या दिव्येन ज्ञानेन नोदितमतिः प्रेरितः सन् चक्रवर्तिनं राजानं इस तरह वे एक दूसरे के पास आकर विचार करने लगे (उप्पण्णे खलु भो देवाणुप्पिया ! जंबुदीचे दीवे भरहे वासे भरहे राया, चाउरंतचक्कवट्टो तं जीममेअं) हे देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप नाम के हो। में भरत क्षेत्र में चातुरन्त चक्रवर्ती भरत नाम के राजा उत्पन्न हुए हैं। तो यह आचार है । (तोअपच्चुप्पण्णमणागयणं विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणिभं करेत्तए) अतीत वर्तमान और अनागत विद्याधरराजाओं का कि वे चक्रवर्तियों के लिये भेट में रत्नादिक प्रदान करे। (तं गच्छामो देवाणुप्पिया ! अम्हे वि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमो) तो हे देवानुप्रिय चलो- हमलोग भी भरत राजा के लिये मेट देवें (इति कटु) इस प्रकार से परस्पर में विचार विनिमय करके (विणमी) उत्तर श्रेणी के अधिपति विनमी ने सुभद्रा नाम का स्त्रीरत्न को प्रदान किया और दक्षिण श्रेणी के अधिपति नमि ने रत्न को कटक और त्रुटिक प्रदान किये ऐसा यहाँ सम्वन्ध लगा लेना चाहिये । (णाऊणं चकवहिं दिवाए मईए चोइअमई) वियार ४२वा या. (उप्पण्णे खलु भो देवाणुप्पिया! जबुहिवे दीवे भरहे वासे भग्हे गया, चाउरंतचावट्टी तं जीअमेअं) . पानुप्रिय! भूदीय नाम द्वीपभां भरतक्षेत्रमा यातुरन्त यती भरनामे २०१५-ययाछे मापणे। ये मायार छ (नीअपच्चुप्पण्णमणागयाण विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीण उत्थाणि करेत्तए) सतात, पत मान भने અનાગત વિદ્યાધર રાજાઓને કે તેઓ ચક્રવર્તીઓ માટે ભેટ રૂપમાં રત્નાદિક પ્રદાન કરે (तं गच्छामो देवाणुप्पिया! अम्हेवि भरहस्स रण्णा उवत्थाणियं करेमो ) तो देवानुप्रिय, यावा, अभेसा। ५५ भरत महा10 भाटलेट अपि थे. (इति कटु) मा प्रभार प२२५२ वियविनिमय ४शन (विणमी) उत्तर श्रेाना अधिपति विनमा सुभद्रा नाम સ્ત્રીરત્ન પ્રદાન કર્યું અને દક્ષિણ શ્રેણીના અધિપતિ નમિએ રનના કટક અને ત્રુટિ પ્રદાન यो सवा अथ ही ants नई से. (णाऊणं चक्कट्टिं दिव्याए मईए चोइ. १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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