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जम्बूद्रोपप्रतिसूत्रे मयं कडुच्छुकं प्रगृत्य प्रतो धूपं दहति तत्र वैडूर्यमयं वैरत्नघटितम्, कडुच्छुकं - धूपाधानकपात्रं प्रगृव गृहीत्वा ( प्रयतः) आद्रियमाणो धूपं दहति (दहेत्ता) दग्धा (सत्तट्ठपयाई पच्चीसक्कर) सप्ताष्टपदानि प्रत्यवष्वष्कति परावर्त्तते तत्र धूपं दग्ध्वा प्रमार्जनादि हेतु विशेषेण सन्निधीयमानचक्ररत्ने अत्यासन्नतया मत्कृताशातना माभूयादित्यभिप्रायेण स राजा सप्ताष्टपदानि प्रत्यपसर्पति पश्चादपसरति इत्यर्थः (पच्चोसक्कित्ता) प्रत्यवष्वष्क्य परावर्त्य (वामं जाणु अंचे जाव पणामं करेई) वामं जानुम् अञ्चति यावत् प्रणामं करोति, तत्र वामं जानुम् अञ्चति आकुञ्चयति ऊर्ध्वं करोति यावत्करणात् (दाहिणं जाणुं धरणियलंसि निहट्ट करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं) इति संग्रहः, दक्षिणं जानुं धरणी तळे निहत्य करतल परिगृहीतं दशनखं शिरसावत्तं मस्तके अञ्जलिं कृत्वा प्रणामं करोति मनोऽभीष्टार्थ सिद्धि - दायकमिदमितिबुद्धया प्रीतः सन् प्रणमतीत्यर्थः (करेत्ता) प्रणामं कृत्वा (भाउघरसालाओ पडिणिक्खमइ) आयुधगृहशालातः प्रतिनिष्क्रामति निर्गच्छति (पडिणिक्ख
धूप जलाया । (दहेत्ता सत्तटुपयाई पच्चीसक्कइ ) धूप जलाकर फिर वह वहां से सात आठ पग पीछे लौटा अर्थात् मेरे द्वारा किसी भी प्रकार से चक्ररत्न की अशातना न हो जावे इस ख्याल से वह धूप जलाकर पीछे वहां से सात आठ पैर दूर हो गया (पन्चोसक्कित्ता वामं जाणु अंचेइ) वहां से ७-८ पैर दूर हो कर उसने अपनी बाइ जानु को ऊपर उठाया (जाव पण्णामं करेई ) यावत् प्रणाम किया यहाँ यावत्पदसे (दाहिणी जाणुं धरणिय लंसि निहटुटु करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि ) इस पाठ का संग्रह हुआ है इस पाठका तात्पर्य ऐसा है कि जब उसने अपनी बांइ जानु को ऊपर की ओर उठाया तब उसने अपनी दाहिनी जानु को भूतल पर रखा और दशों नख अंगुलियों के परस्पर में मिल जावें इस ढंग से अंजलिबना कर और उसे दाहिनी ओर से बाई ओर तक मस्तक के ऊपर से तीन बार घुमाकर प्रणामक्रिया (करेत्ता ) प्रणाम करके ( आउहघरसालाओं पडिणिक्खमइ) फिर वह आयुध शाला से बाहर निकला (पडिणिखमित्ता जेणेव वाहिरिया उवद्वाणसाला नेमांथी धूपनी श्रेणी ओ (विणिम्मुयंत) नीजी २डे हे मेवा (वेरुलियमयं कदुच्यं पग्गहेतु) वैडूर्य भविनिर्मित धूयहडेन पात्रने डाथमां बहने (पयत्ते) बहुत सावधानी पूर्व ते आदर पूर्व तेथे (धुवं दहइ) धूपने तेमां सजाये (दहेना सतट्ठपयाई पच्चोसक्कड) ધૂપ સળગાવીને પિછે તે ત્યાંથી સાત-આઠ પગલાં પાછા ફર્યાં, એટલે કે માપ વડે કાય પણ રીતે ચક્રરત્નની અશાતના ન થાય એ વિચારથી તે ધૂપ સળગાવીને પછી સાત-આઠ भगवां त्यांथी दूर भूसी गये. (पच्चोसक्कित्ता वामं जाणु अंचेइ) त्यांथी सात-पायां पाछा मसीने तेथे पोताना डमा छूटने उपर उठाव्यो. (जाब पणामं करेइ ) यावत् प्रशुभ अर्था, अडीं यावत् पश्री (दाहिणं जाणु धरणियलंसि निहटु करयल परिग्गाहियं दसनहं सिरसम अंजलि) या पाउना साथ थयो छे. या तात्पर्य प्रभा छे જ્યારે તેણે પેાતાના ડાબા ઘૂંટણુને ઉપર ઉઠાવ્યા ત્યારે તેણે પેાતાના જમણા ઘૂંટણને પૃથ્વી ઉપર મૂકયા અને આંગળીએના દશે દશ નખા પરસ્પર
સમ્મિલિત કરીને પછી
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