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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र इत्यादि । 'जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला' यावत् तस्य रथवरस्य कूपरौ आद्रौं स्याताम्, तत्र-रश्वरस्य कूपाविव कूर्पगै कूपराकारत्वात् रथचक्रावयवौ आ भवेताम् 'तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई' ततः खलु स भरतो राजा तुरगान अश्वान् निगृह्णाति-स्थिरीकरोति 'निगिण्हित्ता' तुरगान् निगृह्य 'रहं ठवेइ' रथं स्थापयति 'ठवेत्ता स्थपयित्वा 'धणुं परामुसइ' धनुः परामृशति स्पृशति रहातीत्यर्थः 'तए णं' ततः खलु ततो-धनुः परामर्शानन्तरं खलु स नरपतिः इमानि वक्ष्यमाणानि वचनानि 'भाणीय त्ति' अभाणीत् इति सम्बन्धः किं कृत्वा इत्याह-धनुगृहीत्वा धनुश्च किमाकारक तत्राह- तत् धनुः 'अइरुग्गयवालचंदइंदधणुसंकासं' अचिरोद्गतबालचन्द्रेन्द्रधनुः संकाशम्, तत्र अचिरोद्गतः तत्कालोदितः यो बालचन्द्रः -शुक्लपक्ष द्वितीयांचन्द्रस्तेन ओर मुंह करके मागध तीर्थ से होकर लवण समुद्र में प्रविष्ट हुआ था । (जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला) जब वह लवणसमुद्र में प्रविष्ट हुआ तो वह इतना ही गहरा वहां था कि उसके रथ के पहियों के अवयव ही गीले हो पाये (तएणं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई) भरत राजा ने अपने रथ के घोड़ों को रोक दिया (निगिणित्ता रहं ठवेइ) घोड़ों के रुकते ही रथ भी खड़ा हो गया (ठवेत्ता धणुं परामुसइ) रथ के खड़े होते ही भरत महाराजा ने अपने धनुष को उठाया (एणं) इसके बाद उस भरत राजा ने इस प्रकार से कहा ऐसा यहां सम्बन्ध है । जिस धनुष को भरत राजा ने उठाया था उसकी विशेषता प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं(अइरुग्गय बालचंद इंदधणुसंकासं दरियदप्पिय दढधणसिंगरइयप्तारं उरगवरपवरणवल पवर परपरहुयभमरकुलणीलणिद्धं ) उसका अकार अचिरोद्गत बालचन्द्र के जैसा एवं इन्द्र धनुष के जैसा था। यहां अचिरोद्गत बालचन्द्र से शुक्लपक्ष को द्वितीया का चन्द्र गृहीत हुआ है क्योंकि यहो पतला और विशेषरूप में वक्र धनुष के जैसा होता है। इसी तरह से वर्षाकाल के समय जो गगन में इन्द्रधनुष उद्गता हुआ दिखलाई देता है वह भी इन्द्रधनुष के जैसा ही साव समुद्रमा प्रविष्ट थये। 6. (जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला) यारे a anty સમુદ્રમાં પ્રવિષ્ટ થયો ત્યારે તે આટલે જ. ઊંડે હતો કે તેનાથી તેના રથના ચક્રોના અવयो । साना था . (तपणं से भरहै राया तुरगे निगिण्हई) भरत शो पाताना रचना पास। २४ी हया. (निगिहित्ता रहं ठवेइ) घास। मया तथा २थ ५९ अमे२हो. (ठवेत्ता धणु परामुसइ) २५ मे २ह्यो : २४ भ२ २२ पोताना नुध्यने यु. (त एणं) त्या२ माह ते परत २० मा श्रम ४यु-मेव। सो स्थान સંબંધ છે. જે ધનુષને ભારતરાજાએ ઉઠાવ્યું હતું, તેના વિશેષતા પ્રકટ કરતા સૂત્રકાર
छे-(अश्रुग्गयबालचंदईदधणुसंकासं दरियदप्पियढघणसिंपरइयमारं उरगवर पयरणवल पवर परपरहुय भमरकुलगीलणिद्ध) तेन या२ मशिगत माय । તેમજ ઈન્દ્રધનુષ જેવો હતો. અહ' અવિરદ્ ગત બ લચંદ્રથી શુકલ પક્ષની દ્વિતીયાનો ચંદ્રગૃહીત થયું છે. કેમકે એજ પાતળે અને વિશેષ રૂપમાં વક્ર ધનુષ જેવો હોય છે. આ પ્રમાણે વર્ષાકાળના સમયે જેમ ગગનમાં ઈન્દ્રધનુષ ઉદગત થતું જોવા માં આવે છે. તેમ ત
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