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प्रकाशिका टीका त. वक्षस्कारः सू० ५ अष्टाह्निकासमाप्त्यनन्तरीयकार्यनिरूपणम् ५७३ खलु स भरतो राजा तद्दिव्यं चक्ररत्नं गङ्गाया महानद्या दाक्षिणात्येन कूलेन पौरस्त्यापूर्वी दिशं मागधतीर्थाभिमुखं प्रयातं चलितं पश्यति (पासित्ता) दृष्ट्वा (हट्टतुट्ट जाब हियए कोडुबियपुरिसे सदावेइ) हृष्टतुष्ट यावद्हृदय इति इष्टतुष्ट श्चित्तानन्दितः परमसौमनस्थितः हर्षवश विसर्पहृदयः कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति आह्वति (सदावेत्ता) शब्दयित्वा (एवं वयासी) एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् कथितवान् (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्क हत्थिरयणं पडिकप्पेह) क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! आभिषेक्यम् अभिषेक योग्य हस्तिरत्नं पट्टहस्तिनं प्रतिकल्पयत-सज्जीकुरुत (हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिसेण्णं सग्णाहेह) हयगजरथप्रवरयोधकलितां चातुरङ्गिगी सनां सन्नाहयत सज्जी कुरुत (एयमाणत्तिय पच्चप्पिणह) एतामाज्ञप्तिकाम् आज्ञा प्रत्यर्पयत (तए णं ते कोडुंबिय जाव पच्चप्पिणंति) ततः खलु ते कौटुम्बिक यावत्प्रत्यर्पयन्ति तथा च ते कौटुम्बिक पुरुषाः पुरस्थिमं दिसि मागहतित्थाभिमुहं पयायं पासइ) भरत राजा ने जब उस दिव्य चक्ररत्न को गंगा महानदी के दक्षिणदिशा के तट से पूर्वदिशाकी ओर वर्तमान मागध-तीर्थकी तरफ से जाता हुमा देखा तो (पासित्ता) देखकर वह (हट्ठतुट्ठ जाव हियए कोंडुबियपुरिसे सहावेइ) हृष्ट और तुष्ट हुआ, चित्तमें आनन्दित एवं परम सौमस्थित हुवे उसने हर्ष से उछ ठते हुए हृदय संपन्न बनकर कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और ( सदावेत्ता ) बुलाकर उनसे (एवं वयासी) ऐसा कहा-(खितामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक हस्थिरयणं पडिकप्पेह) हे-देवानुप्रियो ! तुम लोग शीघ्र ही अभिषेक योग्य प्रधान हाथी को-पढ़ हाथी-को सुसज्जित करो। (हगयरहपवर जो हकलियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह) तथा - हय-गज-रथ प्रबर-योधायों से युक्त चातुरंगिणीसेना को सुसज्जित करो। (एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह) जैसी आज्ञा यह मैने तुमको दी है उसके अनुसार सब काम करके फिर हमें खबर दो । (तएणं ते कोबिअपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति) भरत राजा के द्वारा इस प्रकार से आज्ञप्त हुए वे कौटुम्बिक जन हृष्ट तुष्ट हुए एवं चित्त
મહાનદીના દક્ષિણ દિશાના તટથી પૂર્વ દિશાના તરફ વર્તમાન માગધ તીર્થ તરફ જતું જોયું તો (पासित्ता) नन त (हट्ठ तु? जाव हियए कोदुविय पुरिसे सहावेइष्ट भने तुट यये.. ચિત્તમાં આનંદિત તેમજ પરમ સૌમ-નસ્થિત થઈને, હર્ષાવિષ્ટ થઈને કૌટુંબિક પુરુષને Rani भने (सहावेत्ता) मावावीन ते (एवं बयासी) मा प्रमाणे धुं-(स्त्रिप्पामेव भो देवाणुपिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयण पडिकप्पेह) आनुप्रियो ! तमे यथाशी अलि
योग्य प्रधान हाथीन-पाथीन सुस०४१ २. (हयगय रह पवर जोहकलिय चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह तम 64-10-२२-१२ योद्धामोथा युक्त यतु सेनान सुस २१. (पयमाणत्तियं पच्चप्पिणह) आज्ञा मे तमने । छ त भुण मधु अम सन शन ५छ। भने सूयना मा. (त एण ते कोडुबि पुरिसा जाव पच्चपिणति) भरत २०॥ 43 मा प्रमाणे पास थये। तोटु मिनेट-तुष्ट यया अने
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